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________________ होगा। ___ आर्द्रकुमार अनार्य देश का रहने वाला, और हिंदुस्तान के किसी व्यक्ति ने उसे परमात्मा की प्रतिमा भेजी। इस प्रतिमा को देखकर उसे जाति-स्मरण हुआ और पूर्वजन्म भी याद आ गया।वह परमात्मा की शरण स्वीकार करने के लिए भारत चला आया और मुनि-जीवन स्वीकार कर लिया। इसके बाद वह महावीर की सभा में भी पहुँचा, लेकिन योगानुयोग! जीवन में ऐसी कोई कर्मदशा विद्यमान रही कि उसे मुनित्व का चोगा फिर छोड़ना पड़ा और वापस गृहस्थ में जाना पड़ा। जिस व्यक्ति को पूर्वजन्म का स्मरण हो गया, उसे भी अपना चरित्र बदलना पड़ा। उन्होंने विवाह भी किया, बच्चा भी हुआ।वे हर रात बैठकर चिंतन करते कि उन्होंने कितना मुनासिब और कितना गलत काम किया। ___ एक दिन उन्होंने फिर संकल्प कर लिया कि अगले दिन वह श्रमण-प्रव्रज्या स्वीकार कर लेगा। उसने अपनी पत्नी से यह बात कही। हर मनुष्य के भीतर एक चोर छुपा रहता है। जब उसने अपनी पत्नी से पूछा और पुत्र से चर्चा की, इस पर पत्नी चर्खा कातने बैठ गई। इस पर उसके पुत्र ने इसका कारण पूछा तो वह बोली, 'क्या करूँ, तेरे पिता तो संन्यास ले रहे हैं, अब मुझे अपनी आजीविका कमाने के लिए चर्खा तो कातना ही पड़ेगा।' इस पर बेटे ने माँ को आश्वस्त किया कि उसका पिता संन्यास नहीं लेगा। उसने चर्खे से माँ द्वारा काता गया धागा लिया और सोये हुए पिता के पैर से बाँध दिया। पिता की आँख खुली तो देखा कि धागे के बारह आँटे लगे हुए थे। उसने समझा कि अभी बारह वर्ष की आसक्ति शेष है; और यही हुआ, आर्द्रकुमार ने बारह वर्ष बाद संन्यास लिया। बारह वर्ष बाद जब उन्होंने जंगल की ओर कदम बढ़ाए तो उन्हें जंगल में देखते ही एक हाथी ने अपने पाँवों की जजीरें तोड डाली और आर्द्रकुमार की ओर बढ़ने लगा। जिन लोगों का वह हाथी था, वे दौड़े आए और आर्द्रकुमार से कहा, 'हटो, हाथी मार डालेगा।' मगर हाथी आर्द्रकुमार के चरणों में आकर झुका और वापस जंगल में लौट गया। आर्द्रकुमार ने यथार्थ बताया कि हाथी द्वारा लोहे की जंजीरें तोड़ना आसान है, मगर जीवन में बँधे रेशम के धागे तोड़ना मुश्किल है। रेशम के धागे तोड़ने में मैंने बारह वर्ष लगा दिए मगर धन्यभागी है वह हाथी जिसने लोहे की जंजीर को एक झटके में तोड़ डाला। __ कोई भी बंधन व्यक्ति स्वयं बाँधता है। वह बँधा हुआ है। उसे किसी ने नहीं बाँध रखा। हम मुक्त होना चाहें तो पल भर में मुक्त हो सकते हैं । मुक्ति पाने के लिए कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है। सिर्फ अपने को बँधन-मुक्त करने की ज़रूरत है। जब मैं कहता हूँ कि बंधन-मुक्त होना है तो इसका अर्थ यह नहीं कि जंगल में चले जाना |115 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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