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* अपने शक्ति-सामर्थ्य के अनुरूप ही उपवास कीजिए।
समय और परिस्थिति का भी ध्यान रखिए। शक्ति से
अधिक उपवास करना हानिकारक हो सकता है। * जीवन में हो चुकी गलती का प्रायश्चित कीजिए, बड़े
बुज़ुर्गों का विनय करते हुए सबके साथ विनम्रता से पेश आइए, रोगी और पीड़ित लोगों की सेवा का सद्भाव रखिए, हर रोज आधे घंटा किसी पवित्र पुस्तक को पढ़ने की आदत डालिए, दस मिनट ही सही, आत्मस्वरूप का चिंतन करते हुए ध्यान कीजिए और देह-भाव पर नियंत्रण रखते हुए पवित्र और संयमित जीवन जीएं - यह तप का सच्चा स्वरूप है। - भाई-भाई अथवा सास-बहू में आ चुकी दूरियों को कम
करना, जीवन में पलने वाले दुर्गुणों और दुर्व्यसनों का त्याग करना और व्यापार में छल-प्रपंच से परहेज़ रखना तपस्या के ही अलग-अलग रूप हैं। आप कुछ ऐसा कीजिए कि आपका सारा जीवन ही तपस्या बन जाए और आपका घर भी आपका तपोवन।
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