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POORAJSHREERAREERS2006003002
नए अवसरों को वह पैदा कर लेता है। ॥ संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जिसके जीवन में एक
बार भाग्योदय की वेला न आती हो, किन्तु उस वेला का स्वागत न होने पर वह उल्टे पैर लौट जाती है। हर बचपन का बुढ़ापा होता है और हर कार्य की मंज़िल। अपने उत्साह और उमंग को सदा अपनी आँखों में बसा कर रखिए ताकि बुढ़ापा और मंज़िल सदा तरोताज़ा रहें। अपने मनोबल को पंगु होने से बचाइये। आप शरीर से अपंग होकर भी अष्टावक्र की तरह सम्पूर्णता का सामर्थ्य अर्जित कर लेंगे। , कल्पनाओं के पंख उतने ही फैलाइये, जितनी उड़ने की ताक़त हो। कोरी कल्पनाएँ जहाँ आदमी को शेखचिल्ली बनाएगी, वहीं चिन्ता और अवसाद की गहरी खाइयाँ भी खोद डालेंगी।
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