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________________ पास जाकर बैठ गया तो शिष्यों ने कहा - गुरुदेव, इसने आपके लिए कितनी अभद्र और बद्तमीजी की भाषा का उपयोग किया। आपको बुरा नहीं लगा ? सुकरात मुस्कराए और कहने लगे - इसमें बुरा मानने की क्या बात है। मैं इस ज्योतिषी से कहना चाहता हूँ कि इन्होंने जितनी बातें कहीं वे बिल्कुल सत्य हैं। क्योंकि मेरे भीतर क्रोध रहा है, कामुकता रही है, राजद्रोह की प्रवृत्ति भी मेरे भीतर जगी है। मैं हमेशा सत्य बोलने का आदी रहा हूँ, स्पष्ट वक्ता हूँ। लेकिन इस ज्योतिषी ने एक चीज़ पर गौर नहीं किया, इसने सारी बातें तो कह दीं पर यह एक चीज़ नहीं देख पाया, और वह है विवेक । मैंने विवेकपूर्वक अपने सभी दुर्गुणों पर, अवगुणों पर विजय प्राप्त करने की कोशिश की है, बाकी यह जो कह रहा है वह सब सत्य है। दुनिया का हर ज्ञानी और विद्वान स्वयं को ज्ञानी और विद्वान कह सकता है लेकिन सुकरात की जो बात मुझे छूई वह वाक्य है - I know that I know nothing. मैं जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता । मेरा ज्ञान मुझे बतलाता है कि मैं कुछ नहीं जानता, ज्ञान इतना अनंत और अथाह है। इंसान के अहं को तोड़ने के लिए सुकरात की इस अज्ञान-स्वीकृति की बात को याद रखा जाना चाहिए । चलने में सावधानी हटी तो ठोकर लग सकती है, पर बोलने में असावधानी बरती तो बहुत ख़तरे हैं - सारे कषायों के अनुबंध हो सकते हैं, सारे रिश्तों में खटास पड़ सकती है, क्रोध पैदा हो सकता है, कैरियर चौपट हो सकता है, स्वास्थ्य बिगड़ सकता है, दिमाग असंतुलित हो सकता है। मैंने सुना है एक क्रोध में भरी महिला ने अपने रोते हुए बच्चे को दूध पिला दिया वह बच्चा मर गया। यह भी पढ़ा है कि एक क्रोधी व्यक्ति के खून का इंजेक्शन किसी खरगोश को लगा दिया, वह खरगोश तड़फ-तड़फ कर मर गया। क्रोध खून को ज़हर बनाता है। भगवान महावीर अपनी पवित्र वाणी से संदेश देना चाहते हैं कि हम अपनी भाषा में भाषा-समिति का विवेक रखें और कभी अनचाहे दिमागी असंतुलन से अभद्र भाषा निकल गई तो इससे जुड़ा सूत्र दिया - वचन-गुप्ति। सही भाषा का उपयोग करते हुए अगर कभी गलती हो जाए तो 'वचन-गुप्ति' अर्थात् वापस अपने आप पर लगाम लगा लें। तत्काल सोचें - नहीं, मुझे ऐसा ८४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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