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नोट कर लें। तभी चाय-नाश्ता करते हुए और काम याद आ जाएँगे उन्हें भी नोट कर लें। जितने भी काम बनते हैं उन्हें नोट करते जाएँ। ऐसे तो आपको दो काम भी करने को याद नहीं आएंगे लेकिन लिखने लगोगे तो आधे घंटे की चहलकदमी में भी बीस तरह के काम याद आ जाएँगे। लिख लेने से उन कामों को पूरा करने का पुरुषार्थ अपने आप जग जाएगा। संध्याकाल में उस डायरी को पुनः टटोल लेना चाहिए कि आज कितने काम पूरे हुए । हो सकता है जितने लिखे थे वे सब पूरे न हो पाएँ लेकिन आपको पता चल जाएगा कि कितने बचे, उन्हें दूसरे दिन किया जा सकता है। हफ़्ता-दस दिन बाद अपने जीवन में ऐसी आदत पड़ जाएगी, ऐसी जागरूकता आ जाएगी कि हम एक दिन में बीस काम निपटा सकेंगे। अपने-आप सक्रियता पैदा हो जाती है। इससे अप्रमाद दशा आती है और सुस्ती दूर हो जाती है। हम सभी इन्सान हैं लेकिन सबकी कार्य-प्रणाली अलग होती है। बस ज़रूरत सिस्टमेटिक तरीके से करने की है। यह दैनंदिनी जीवन का वर्क-प्लान है कि हम रोज़ाना इतने-इतने काम कर लेंगे।
अगर काम करते हुए अधिक थकान आ जाए तो दस मिनिट का कायोत्सर्गध्यान कर लीजिए या कहीं बैठकर बॉडी रिलेक्सेशन कर लें, बॉडी पुनः एक्टिव हो जाएगी, दिमाग एक्टिव हो जाएगा। व्यक्ति रातभर सोता है, इससे वह अपनी दिनभर की थकावट को दूर करता है लेकिन वह रिलेक्सेशन का तरीका समझ जाए तो पन्द्रह-बीस मिनिट में ही वह पूरे दिन की थकावट को दूर करने में सफल हो जाता है।
इसके अतिरिक्त व्यावहारिक जीवन में आप जो कार्य करते हैं सावधानी से करें । खाना-पीना, उठना-बैठना, अपना हर वह कार्य जिसे अंजाम देना है सावधानी, सचेतनता से करें ताकि वह कार्य पूर्ण हो । जो साधक जागरूक दशाओं को साधता है वह अगर बाहर कोई क्रियाकलाप कर रहा है तो बाहर उसे जागरूक रहना चाहिए और जब वह ध्यान करता है तो भीतर उसे जागरूक रहना चाहिए । अधिक कुछ नहीं करना है, केवल जागरूकता को साधना है। भगवान बुद्ध द्वारा प्रणीत विपश्यना ध्यान-पद्धति और भगवान महावीर द्वारा प्रणीत अनुपश्यना पद्धति दोनों एक ही हैं। केवल शब्द का फ़र्क है। पश्य अर्थात् देखना । अनुपश्यना अर्थात् लगातार देखना, लगातार अनुभव करना और विपश्यना
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