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________________ भी संसारी है और जागरूकतापूर्वक संसार में जीने वाला भी संन्यासी है, साधक है। Please do every work with consiousness, awareness. संबोधि-साधना भी व्यक्ति को जागरूकता पूर्वक जीना सिखाती है, यह जीने की कला है । हम कह सकते हैं कि जागरूकतापूर्वक खाना खाने पर व्यक्ति ठीक ढंग से खाएगा, चलने पर ठोकर नहीं खाएगा। इसी तरह अगर हम आत्म-तत्त्व के प्रति जागरूक रहते हैं तो जीवन के सारभूत अर्थों को उपलब्ध कर सकते हैं। अप्रमाद साधना-मार्ग का चिराग है। जो हमें यह जागरूकता देता है वही हमारा गुरु होता है । जो उल्टा बेहोशी में ले जाए वह संसारी होता है। 'गुरु' शब्द का अर्थ ही है अंधकार का नाश करने वाला या अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला । एक अच्छी पुस्तक है - इन द सर्च ऑफ मिरेकुलस - लेखक हैं ऑस्पेंस्की। उसने यह किताब अपने गुरु गुरजिएफ को समर्पित की है और उनके लिए लिखा है - समर्पित है उसे, जिसने मुझे नींद से जगाया । अर्थात् मैं मूर्छित दशा में पड़ा हुआ था, सोया हुआ था, जिसने मेरी आँखें खोलीं, मेरे भीतर के नेत्र खोले, उसे यह मेरी किताब समर्पित है। इन्सान के चित्त की तीन अवस्थाएँ होती हैं - जागरूकता, स्वप्न, निद्रा अथवा मूर्छा । यद्यपि नींद हमारे शरीर के लिए उपयोगी है - नींद से शरीर पुष्ट होता है, थकावट दूर होती है, शरीर के रक्तचाप में संतुलन आता है, पुरुषार्थ की पुनः वृद्धि होती है। यहाँ पतंजलि ने जिस नींद की बात की है वह शारीरिक नहीं आत्मा की बात है। इन्सान की आत्मा जो मूर्छित हो गई है, सांसारिक राग-रंग में लिप्त अवस्था निद्रा कहलाती है। दूसरी है स्वप्नावस्था, दुनिया का हर इंसान सपना देखता है। एक सोया हुआ व्यक्ति एक रात में चार-पाँच सपने देख लेता है चाहे याद रहे या ना रहे । स्वप्न वह है जो अर्ध-निद्रित अवस्था में महसूस किया जाता है । न जागा हुआ न सोया हुआ, इसके बीच में व्यक्ति जो देखता है, कहता है, सुनता है, स्पर्श करता है वही सपना कहलाता है। स्वप्न की स्थिति में इन्द्रियाँ तो सो जाती हैं पर मन जग जाता है। तब वह भिन्न-भिन्न दृश्य देखने लगता है। ३०३ www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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