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________________ लोग उनकी भी आलोचना करते थे । अब सीताराम - सीताराम कर रहे हैं पर जब थे तब सीता पर भी अंगुलियाँ उठाते रहे। जब तक कृष्ण जीवित रहे तब उद्धव जैसे लोगों तक ने यह कहा कि कृष्ण तो गोपियों के पीछे पागल हैं। लेकिन आज उन्हीं गोपियों और राधा को याद कर-करके लोग अपनी जिह्वा को निर्मल करते हैं और अपने भव-भव के पापों को काटने में उनके पुण्य - प्रभाव का उपयोग करते हैं। मरने के बाद पूजना मनुष्य की पुरानी आदत है। यह अज्ञानता है, लेकिन अज्ञानता का पर्दा हटने की वज़ह से ही वह, मरने के बाद महापुरुषों की पूजा शुरू कर देता है। काश, यह पर्दा महापुरुषों के जीते जी हट चुका होता । तब गौशालक, गौशालक नहीं रहता, गौतम बन गया होता, रावण, रावण न होता वह भी बदलकर कोई सुग्रीव, हनुमान या विभीषण बन जाता । महापुरुषों का जीवन प्रकाश - किरण की तरह है । जब हम उन्हें याद करेंगे तो हमारे भीतर भी थोड़ी ही सही, महानता घटित होने की प्रेरणा जगेगी। सूरज को याद करेंगे तो सूरज की किरण प्राप्त करने की इच्छा होगी, फूलों को याद करेंगे तो फूलों की तरह खिलने की तमन्ना होगी, महापुरुषों को याद करेंगे तो उनकी तरह का चरित्र बनाने की भावना उठेगी। महापुरुष भले ही अतीत में हुए हों, लेकिन उन्हें अब भी चुरा लिया जाना चाहिए। हमने अचौर्य - व्रत की प्रेरणा पाई है फिर भी एक चोरी अवश्य कर लेनी चाहिए कि महापुरुषों के जीवन को, उनके अनुभवों को चुरा लें। उनके उस जीवन के मालिक बन जाएँ जिस जीवन के मालिक वे खुद बन गए थे। यह चोरी हमारा भला करेगी। अगर हम उनकी बातों और उनके ज्ञान के मालिक बन गए तो हम वह न रहेंगे जो हम वर्तमान में हैं। हम वो हो चुके होंगे जो वे खुद रहे थे । सोना अगर आग में जाएगा तो कुंदन बनेगा। अगर सोना कुन्दन न बन प्राए तो सोना खोटा । हम महापुरुषों की शरण में गए और प्रकाश की कोई किरण हमारे भीतर न उतर पाई तो इसका मतलब यही है कि हमारे लोहे पर जंग कुछ ज़्यादा ही चढ़ा हुआ है, हमें उसे घिसना पड़ेगा। महापुरुषों की मूर्तियाँ और फोटो तो बहुत बन चुके हैं लेकिन उनकी बातों को जीने वाले लोग कम हो गए हैं । इस दुनिया का भला मंदिरों और मस्जिदों से नहीं वरन् महापुरुषों की बातों २० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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