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________________ कहानी बताती है कि रत्नाकर डाकू को सप्त ऋषि मिले, उनके वचनों ने रत्नाकर को डाकू न रहने दिया, वरन् उसके जीवन को इतना बदल दिया कि वही आगे चलकर महान ऋषि वाल्मीकि हो गया । तुलसीदास की कथा से कौन अपरिचित है ? उनकी पत्नी रत्नावती के द्वारा की गई टिप्पणी कि - तुम्हें जितना राग काम के प्रति है उतना राग यदि राम के प्रति होता तो संसार से मुक्त हो गए होते। इस व्यंग्य ने तुलसी को महाकवि गोस्वामी तुलसीदास बना दिया। कहीं कुछ परिवर्तन होना हो तो छोटी-सी चिंगारी भी काम कर जाती है। सूरज की एक किरण भटके हुए इन्सान को राह दिखा देती है। परिणाम न निकले तो दुनिया के सारे शास्त्र निष्फल हैं। काम करना हो तो एक पंक्ति भी काम कर जाती है और काम न करना हो तो बड़े-बड़े शास्त्र धरे रह जाते हैं। कितनी ही दफ़ा तोप के गोले बेकार हो जाते हैं और बंदूक की गोली कारगर हो जाती है। हजारों सैनिकों का सैन्यबल बेकार हो जाता है और छोटे बच्चे से निकला तीर राजमुकुट को धराशायी कर देता है। तुलसीदास बदल गए, वाल्मीकि बदल गए। चंडकौशिक को महावीर ने कोई बहुत से शास्त्र नहीं सुनाए थे और न ही घंटों उपदेश दिया था। केवल इतना ही कहा था - बुज्झ .. । बोध को प्राप्त हो, हे जीव अब शांत हो । तू कब तक ऐसे क्रोध से परेशान होता रहेगा और कब तक अपनी आत्मा को क्रोध के ज़हर से विषपायी बनाता रहेगा। और चंडकौशिक बदल गया। अंगुलीमाल के लिए कहते हैं कि उसने नौ सौ निन्यानवे लोगों की हत्या करके उनकी अंगुलियों की माला बनाई, अपनी इष्ट देवी को पहनाने के लिए। उस माला में एक व्यक्ति की अंगुलियों की आवश्यकता थी। और तो कोई मिल नहीं पाया, बुद्ध मिल गए। जैसे ही उसने बुद्ध पर तलवार चलानी चाही कि बुद्ध ने कहा - तुम अगर मुझे मारना चाहते हो तो मारो, मैं तुम्हें इसकी रज़ा देता हूँ। लेकिन तुम ऐसा करो इससे पहले मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। मैं तुमसे पूछता हूँ कि तुम्हारी तलवार जैसे मेरा सिर धड़ से अलग कर सकती है वैसे ही क्या इस पेड़ की टहनी को भी काट सकती है ? बुद्ध का तो इतना कहना हुआ कि अंगुलीमाल ने झट से तलवार निकाली और पेड़ की डाली पर चला दी। डाली पेड़ से अलग होकर गिर पड़ी। बुद्ध ने मुस्कराते हुए कहा - काटना तो Jairylucation International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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