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________________ उस ध्यान को करके, उसी ज्ञान को प्राप्त करने की, उस ज्ञान का उदय करने की कोशिश करेंगे । ध्यान मार्ग है, रास्ता है। पतंजलि ने यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का मार्ग दिया । ध्यान एक कला है, गुर है जो हमें आत्म-ज्ञान देता है । ध्यान करना बहुत सरल है, इसे कठिन न समझें । तपस्या फिर भी कठिन है, दान देना भी कठिन है, पर ध्यान...यह तो बहुत सरल है। शांत स्थान पर बैठ जाएँ, आँखों को बंद कर लें, भीतर की आँखों को खोल लें। पहले पाँच-दस मिनिट तक लम्बे गहरे श्वास लें, लंबे गहरे श्वास छोड़ें। फिर पाँच-दस मिनिट तक मंद-मंद श्वास लें और मंद-मंद श्वास छोड़ें। दस से पन्द्रह मिनिट तक यह प्राणायाम पहले कर लें । लम्बे गहरे और मंद श्वास-प्रश्वास लेने - छोड़ने से श्वास और चित्त के बीच में एकलयता आ जाती है, तारतम्य बन जाता है । हम अपनी प्राण- चेतना करीब हो जाते हैं । साँस ही एकमात्र जरिया है जिसके द्वारा हम प्राण - चेतना के करीब हो पाते हैं। अगर ऐसे सीधे ही ध्यान में बैठ गए तो एक मिनिट भी मन न टिकेगा बल्कि भटकने लग जाएगा। इसलिए पहले श्वासों के साथ एकलय होते रहें । तब तक श्वास-प्रश्वास करते रहें जब तक साँस हमारी प्राण-चेतना के साथ एकाकार न हो जाए। जैसे ही लगे कि हम भीतर से ऊर्जावान होने लगे हैं, ऊर्जा हमारी पकड़ में आने लगे तो श्वास को मंद करते जाओ, मंद करते जाओ और मंद करते-करते-करते ऐसी स्थिति आ जाएगी कि हर तरह के प्रयास से मुक्त हो जाओगे और अनायास सहज ध्यान की अवस्था बन जाएगी। उस ध्यान की अवस्था में इन्द्रियाँ शांत हो गई हैं, मन शांत हो गया है, केवल हृदय के द्वार पर खड़े होकर हम जीवन को समझ रहे होते हैं, अपनी अन्तरात्मा में उतर रहे होते हैं । अन्तरात्मा को जी रहे होते हैं, अपनी अन्तरात्मा का ज्ञान प्राप्त कर रहे होते हैं। उस अन्तरात्मा के ज्ञान से ही यह बोध होता है शरीर शरीर है और मैं शरीर से भिन्न हूँ । देह जड़ तत्त्व है और मैं चैतन्य तत्त्व हूँ । सचेतनता में ही चेतना, चैतन्य का आविष्कार होता है । यह एकलयता और एकरसता जो भीतर बनेगी वही हमारे भीतर चैतन्य को प्रगट करेगी। मैंने कहा था कि चिंगारी के जरिए ही आत्मज्ञान के दीपक को जलाया जा सकता है, इस आधा घंटे के ध्यान से आत्मज्ञान के प्रकाश की किरण उभरकर आएगी, Jain Education International For Personal & Private Use Only २७५ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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