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________________ क्या है निर्जीव ? व्यक्ति के अज्ञान की कारा को तोड़ा जा सकता है, अज्ञान के अँधेरे को दूर किया जा सकता है। अज्ञान के अँधेरे को दूर करने के लिए किसी भी महान् पवित्र शास्त्र को बीस से तीस मिनिट तक ज़रूर पढ़ें । धर्म-शास्त्रों के जरिए, जिसमें पवित्र वाणी लिखी हुई है, जिसमें आत्म-ज्ञानी, तत्त्व-विद् लोगों की वाणी लिखी हुई है - हम उन तत्त्व की बातों को पढ़कर अपने भीतर कुछ चिंतन कर सकते हैं, मनन कर सकते हैं। अतः महापुरुषों की वाणी को सुनें, पढ़ें, उनका सत्संग करें, उसमें अवगाहन करें। गंगा-स्नान तो बहुत किया और शायद गंगा-स्नान रोज न हो पाए लेकिन एक गंगा-स्नान और है जिसमें धर्म-शास्त्रों को पढ़कर उसके ज्ञान में डुबकी लगाना भी गंगा-स्नान से कम नहीं है। इस तरह प्रतिदिन स्वाध्याय करें । रोज़ाना बीस से तीस मिनिट पढ़ने की आदत हो जाने पर तीन सालों में न जाने कितने धर्म-ग्रंथ पढ़ डालेंगे और एक बार आदत हो जाने पर पिपासा बढ़ती ही जाएगी फिर तो अन्य धर्मों के ग्रंथ भी पढने की ललक जाग उठेगी। धर्मशास्त्रों को पढ़ने से हमें अन्तर्दृष्टि उपलब्ध होती है, तत्त्व-दृष्टि मिलती है। जिसको पढ़ेंगे मन पर वैसा ही असर आएगा। साहित्य पढ़ेंगे तो साहित्यिक मन की रचना होगी, राजनीति के बारे में पढ़ने पर राजनीतिक मन का निर्माण होगा, किसी सेक्सी पत्रिका को पढ़ेंगे तो हमारे मन में सेक्स की भावना पैदा होगी और हम सेक्सी चित्त बन जाएँगे। धर्मशास्त्रों को पढ़ेंगे तो चित्त धार्मिक हो जाएगा, धार्मिक मन के मालिक बन जाएँगे। अच्छी पुस्तकें हंसदृष्टि को खोलने में सहायक होंगी, अज्ञान को काटने में मददगार होंगी। दूसरा काम यह हो कि गुरुजनों, संतों-महात्माओं के पास जाकर बैठने की आदत डालो। उनके पास जाकर कुछ समय व्यतीत करो। यह नहीं कि गए, पाँव छुए और चले आए। फिर तो मंदिर जाने और संत के पास जाने में कुछ फ़र्क न रहा। यदि गुरु के पास जाकर उनके ज्ञान का आनन्द लेते हो, उनके प्रकाश, उनकी समाधि, उनकी शांति की छाँव में बैठते हो, तो मंदिर में बैठने से भी अधिक, आपके लिए परिणामदायी होगा। मंदिर में केवल प्रार्थना की जा सकती है, ध्यान किया जा सकता है, पर गुरु से पाया जा सकता है। महावीर अरिहंत हुए, तीर्थंकर हुए लेकिन महावीर सद्गुरु भी हुए। २७२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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