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________________ उसने कहा – तुम अरबपति की पत्नी होकर रो रही हो ? तुम्हें भला किस बात - की कमी है ? पत्नी ने कहा- कमी तो कुछ नहीं है, पर मेरा भाई संन्यास लेने वाला है और उसने अपनी पत्नी को त्यागने का प्रण कर लिया है । वह धन, जमीन, जायदाद का भी एक-एक कर त्याग करता जा रहा है। दस दिन बाद वह संन्यास भी ले लेगा। पति हँसा और कहा - अरे जब संन्यास लेना ही है तो दस दिन की प्रतीक्षा क्या करना, लेना है तो लिया और नहीं लेना है तो यह दस दिन का नाटक क्यों ? पत्नी को बुरा लगा। हर पत्नी सबकुछ सहन कर लेती है पर भाई की आलोचना उसे नागवार गुजरती है । वह बर्दाश्त न कर पाई और बोली- आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे यह बच्चों का खेल है। पति ने कहा - और क्या जब छोड़ना ही है तो बच्चों का खेल ही है । पत्नी ने कहा - अजी, कहना बहुत सरल होता है, आप करके दिखाओ तो आपको पता चले। मेरा भाई इतना तो छोड़ रहा है। आप छोड़कर दिखाओ तो मालूम पड़े। पत्नी का इतना कहना था कि पति झट से खड़ा हुआ और बोला - अच्छा, तुम छोड़ने की बात कर रही हो, लो मैंने छोड़ा। इतना कहते हुए उबटन लगे शरीर से घर से बाहर निकल आया और अपने साले साहब के पास जाकर घर के नीचे से ही आवाज़ लगाई - भइया, मैं तो छोड़ आया, तुम्हें आना है तो तुम भी चले आओ। साले ने ऊपर से देखा कि उसका जीजा उबटन से सना हुआ ही चला आया है, छोटा-सा अँगोछा ही पहन रखा है। उसने इस बात की परवाह भी नहीं की कि जब छोड़ना ही है तो पहनना क्या और बदलना क्या ! 1 छोड़ना होता है तो चुटकी में छूट जाता है और न छोड़ना हो तो जिंदगी भर ज्ञान की बातें सुनने से भी नहीं छूटता है । महावीर से छूट गया । उनके माता-पिता, भाई, बेटी- जँवाई से न छूट पाया । प्रबल पुण्योदय होते हैं तभी व्यक्ति छोड़ पाता है । अँधेरे में जीना आसान होता है लेकिन प्रकाश-पथ का अनुगामी होना कठिन होता है । भोग के रास्ते पर जाना सरल होता है, 1 लेकिन योग के रास्ते पर जाना कठिन होता है। पहाड़ से नीचे उतरना आसान होता है, लेकिन पहाड़ पर चढ़ना कठिन होता है । मुक्ति का रास्ता कठिनाई का, संघर्ष का, जितेन्द्रिय होने का, स्वयं को जीतने का रास्ता है । व्यक्ति अगर अपने भीतर ज्ञान की रोशनी को पैदा कर ले तो काया रहती है लेकिन काया की माया २७० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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