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________________ रखा और उतर गया। अगले दिन वही युवक मेरे पास आया, कहने लगा - आज के बाद मैं किसी तरह का व्यसन नहीं करूँगा। मैंने कहा - यह तो अच्छी बात हुई, पर आज तो मैंने ऐसी कोई प्रेरणा ही नहीं दी कि जिससे कोई व्यसन-मुक्ति के लिए प्रेरित होता । तुम्हें प्रेरणा कैसे मिली? उसने कहा - प्रेरणा तो इस बात से मिली कि कल जब आप पीठ पर से नीचे उतर रहे थे, आपने मेरे हाथ पर अपना हाथ रखा और नीचे उतरे थे। जैसे ही मैं घर गया मेरी माँ ने मुझसे कहा कि आज तू धन्य हो गया । गुरुजी ने तेरे हाथ पकड़ लिये । मुझे जर्दा खाने की आदत थी सो जैसे ही जर्दा खाने के लिए खैनी अपने हाथ में ली कि दो दृश्य याद आ गए - एक तो आपने अपना हाथ मेरे हाथ में रखा और दूसरा मेरी माँ के वचन कि बेटा आज तो तू धन्य हो गया । तब मेरा मन कहने लगा - जिन हाथों को गुरुजी ने थाम लिया उन हाथों से जर्दा, खैनी, गुटखा खाऊँ यह अब मुझे शोभा नहीं देता । गुरुजी मैं आपसे यही नियम लेने के लिए आया हूँ कि आज के बाद कभी किसी तरह के व्यसन का उपयोग नहीं करूँगा। ___मैंने कहा - चलो आओ। मैंने हाथ तो तुम्हारा अनायास ही थाम लिया था, पर तुमने ऐसा त्याग करके सच्चे तौर पर अपना हाथ मुझे थमा दिया। आओ अब हम नौका पर सवार होते हैं और उस किनारे की तरफ चलने का प्रयत्न करते हैं जिस किनारे की बात मैं कर रहा हूँ। हम सब मिलकर उस नौका को खेवेंगे। कोई भी बड़ा या छोटा नहीं है। हम सब साथ-साथ हैं। कोई आगे या पीछे चल रहा है यह ठीक नहीं है। हम सब साथ-साथ चलते हैं। अगर मैं गिर जाऊँ तो आप लोग थाम लेना । आप गिर जाओगे तो मैं आपको थाम लूँगा। इस तरह एक-दूजे को थामते-थामते हम लोग नैया को पार लगाएँगे, भव से पार लगेंगे और उस किनारे का आनन्द लेकर जीएँगे जिसे महावीर ने मोक्ष, बुद्ध ने निर्वाण, पतंजलि, राम और कृष्ण ने बैकुण्ठ कहने की कोशिश की है। आज प्रेमपूर्वक इतना ही। नमस्कार ! १६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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