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________________ निकलना ही लेश्याओं से बाहर आकर मुक्ति के दरवाजे पर पहुँचना है, मुक्ति के दरवाजे का खुलना है। हम सभी लोग प्रयत्न कर रहे हैं, आगे बढ़ रहे हैं। जिसमें जितनी क्षमता होती है, होश और बोध जागता है, ध्यान सधता है, स्वयं से प्रेम होता जा रहा है त्यों-त्यों हमारे कषाय मंद-मंद हुए हैं। अभी और मंद होने बाकी हैं। आने वाले दिनों में और मंद करेंगे। अपनी लेश्याओं को निर्मल करेंगे। शुभ भाव रखेंगे, ईश्वर का चिंतन करेंगे, महापुरुषों के चरित्र का पठन-श्रवण करेंगे, चिंतन-मनन करेंगे। प्रमोद-भाव से भरे रहेंगे, मध्यस्थ भाव में स्थित रहेंगे। कुल मिलाकर हम ज्यों-ज्यों समदर्शी होंगे, विवेक का दीप हमारे भीतर जलेगा, हम लोग अन्तर्मन से प्रसन्न होंगे, प्राणीमात्र के लिए प्रेमभाव व मैत्री-भाव उमड़ेगा तब अपने आप धीरे-धीरे कषायों से, लेश्याओं से मुक्त होते चले जायेंगे। और हमारा व्यक्तित्व, हमारी अन्तश्चेतना धीरे-धीरे ऊपर उठती जाएगी। श्री प्रभु हमें मुक्त देखना चाहते हैं। वे हमारी मुक्ति के पक्षधर हैं। इसीलिए रास्ता बताते हैं कि अपने कषायों को मंद करो, लेश्याओं को शुद्ध करो और आत्मा की शुद्धि करते हुए अपनी मुक्ति की व्यवस्था करो। ऐसी पवित्र प्रेरणा श्रीप्रभु दे रहे हैं। आज इतना ही। प्रेमपूर्ण नमस्कार ! २३९ www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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