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________________ का मोह धीरे-धीरे कम होगा, शिथिल होगा। नहीं तो किसी से भागवान छूटती है ? अस्सी, नब्बे वर्ष का वृद्ध भी अपनी पत्नी को भूल नहीं सकता । एक दफा मैंने एक सौ दो वर्ष के एक सज्जन से पूछा था - आपकी पत्नी को गुजरे कितने साल हो गये ? उन्होंने कहा - सत्रह साल हो गये। मैंने पूछा - आपको पत्नी की याद आती है ? कहने लगे - हाँ, कभी-कभी आती है। मैंने कहा - सिर्फ पत्नी की ही याद आती है या और सब बातें भी याद आती हैं। उन्होंने कहा - मतलब ? मैंने कहा - आप पति-पत्नी थे.... । कहने लगे - हाँ, कभी-कभी सब याद आने लगता है। ___एक सौ दो वर्ष का हो जाए व्यक्ति तब भी पुरानी बातें, पुराने ख़यालात, पुराने लोग, पुराने सम्बन्ध, पुराने भोग, पुराने मोह अपने आप याद आ जाते हैं। इन्सान भूल नहीं पाता । सब लेश्याओं का चक्कर है। हम सब लेश्याओं से बँधे हुए हैं। अगर हम सभी उस अदृश्य घेरे को देखने का, समझने का प्रयत्न करें तो अपन कुछ एक्स्ट्रा काम कर सकते हैं। कुछ नई इबारत लिख सकते हैं। कुछ नई आध्यात्मिक खुशबू को उपलब्ध कर सकते हैं। कुछ भीतर की शुद्धि कर सकते हैं। ज्यों-ज्यों हमारी लेश्याओं की शुद्धि होती है त्यों-त्यों हमारी आत्मा में भी शुद्धि आती जाती है। लेश्याओं में तब शुद्धि होती है जब हमारे कषायों में मंदता आती है। जैसे-जैसे हम अपने कषायों को कमजोर करेंगे, अपने क्रोध को शांत करने का प्रयत्न करेंगे, अपने मोह-विकारों को शांत करने का प्रयत्न करेंगे त्यों-त्यों हमारी लेश्याओं की शुद्धि होगी। जैसे-जैसे हमारी लेश्याओं की शुद्धि होगी वैसे-वैसे हमारी अन्तरात्मा की भी शुद्धि होगी। इस तरह हमारे मन की धुरी पर सारा दारोमदार आकर टिक जाता है। कुछ बातें प्रकट में महसूस हो जाती हैं, कुछ बातें अप्रकट रह जाती हैं। कभी हमें लगता है कि हम पवित्र हो गये लेकिन अप्रकट मन को किसने समझा है। विश्वामित्र को लगा था कि वे पवित्र हो गये हैं लेकिन अचेतन मन का विकार तो अन्ततः प्रकट हो ही गया । हम अपने चेतन मन को तो समझ सकते हैं लेकिन अचेतन और अवचेतन मन को नहीं समझ पाते । इसलिए यह कहने का अहंकार व्यर्थ है कि मैंने सब कुछ पा लिया है। क्योंकि पता नहीं चलता कब कौन औंधे मुँह गिर पड़े। कब किसके जीवन में मेनका का प्रवेश हो जाए और २३२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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