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________________ नहीं, गोली दागने का जो फोर्स है उसके कारण मरता है । इंसान जो भी करता है वह एक फोर्स है, यह फोर्स, यह अंधा प्रवाह जब हमारे भीतर उदय होता है हम भी अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। एक ज्ञानी, शांतचेता कहलाने वाला व्यक्ति भी जब क्रोध के फोर्स के अधीन होता है, तो वह भी आउट ऑफ कन्ट्रोल हो जाता है, गाली-गलौच करने लगता है, क्रोधित हो जाता है, गुस्सा करने लगता है। एक पढ़ा-लिखा, सभ्य-सा इंसान, जब उसके भीतर मोह, विकार या वासना उठती है तब वह अपना सारा ज्ञान-ध्यान भूल जाता है और अवांछित कार्य भी करने लगता है। अंध प्रवाह, अंधा फोर्स हम सभी के भीतर उठता है। यही है लेश्या। महावीर ने जिसे लेश्या कहा उसे मैं फोर्स कहता हूँ। जिसका आवेग उठने पर व्यक्ति अपनी सुध-बुध सब भूल जाता है तब सही या गलत कुछ भी करने को तत्पर हो जाता है। फोर्स अच्छा या बुरा कैसा भी हो सकता है । क्रोध का फोर्स बुरा है और प्रेम व शांति का फोर्स अच्छा कह सकते हैं। क्रोध में सब कुछ भूल जाते हैं। आत्मा-परमात्मा का ज्ञान धरा रह जाता है। तालाब में पानी है, बाढ़ में भी पानी आता है। जब पानी का प्रवाह तेज होता है तो बाढ़ में सब तटबंध टूट जाते हैं । जो बचाने वाला होता है उसको भी ले डूबता है, बाँध को भी तोड़ देता है। क्रोध के फोर्स में व्यक्ति अशुभ काम करने को तत्पर हो जाता है । यह है अशुभ लेश्या। ___ लेश्या' शब्द का अर्थ है जो हमें घेर ले, अपने प्रभाव में ले ले। जैसे - शेर किसी गीदड़ को पकड़ ले, उसमें अपने नाखून और जबड़े फँसा दे तो यही कहा जाएगा कि शेर उस पर हावी हो गया और फँसा हुआ पशु लाचार हो गया है। ऐसे ही हमारे भीतर उठने वाला प्रवाह जब हमें अपने प्रभाव में ले लेता है तब हमारा ज्ञान-ध्यान सब एक तरफ चला जाता है और व्यक्ति उस प्रवाह में बहने को मज़बूर हो जाता है। लेश्या के प्रभाव से, भला सा व्यक्ति भी, पानी में तैरती हुई नौका की तरह तेज प्रवाह आने पर डूब जाती है, अपना आपा खोकर विकारों के प्रवाह में डूब जाता है। जितने भी ग़लत काम होते हैं जैसे - बलात्कार, हत्या, आतंक, चोरी-डकैती आदि - ऐसे समय में उस व्यक्ति के भीतर अंधी लेश्या का उदय होता है और वह ग़लत काम कर जाता है। कषाय के उदय से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainel Sorg
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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