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कैसे जिएँ संयमसे
महावीर की दृष्टि पूरी तरह मुक्ति-सापेक्ष है। उनकी प्रेरणाओं और संदेशों के पीछे जो रोशनी काम करती है वह मुक्ति से जुड़ी हुई है। महावीर मानव मात्र से प्रेम करते हैं। वे मानव मात्र की मुक्ति चाहते हैं। वे अतीत में भी इंसान को मुक्ति का रास्ता दिखाते रहे। उनके संदेश आज भी इंसानियत को मुक्ति का रास्ता दे सकते हैं । मुक्ति महावीर का आधार है। हम संसार में रहें या संन्यास में, लेकिन दोनों ही स्थितियों में हमारी आँखों में अगर कोई नूर रहना चाहिए तो वह मुक्ति का नूर है, मुक्ति की रोशनी है।
स्वयं महावीर के समय में भी अनगिनत लोगों ने मुक्ति-पथ का अनुसरण किया और मुक्ति उपलब्ध की। आज भी लोग महावीर जैसे महापुरुषों के प्रति श्रद्धा रखते हुए उनके संदेशों को अपने जीवन के साथ जीते हैं और उनके बताये हुए रास्ते पर चलकर मुक्ति को अपना लक्ष्य बनाया करते हैं। अगर किसी भी इंसान को मुक्ति के रास्ते पर चलना है तो उसे संसार में रहते हुए भी वैसे ही जीना चाहिए जैसे कि कमल का फूल कीचड़ में रहा करता है। अगर कमल का फूल कीचड़ में पैदा होता है तो उसका कीचड़ में रहना बुरा नहीं है, लेकिन कीचड़ का कमल के पत्तों पर आ जाना अवश्य गलत है। संसार में रहना कतई गलत नहीं है लेकिन संसार की आसक्तियों में अपने दिल को संकीर्ण बना लेना
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