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को आप कब भूलते हैं। संत ने कहा - ऐसा दिन आज तक आया ही नहीं कि मैं भगवान को भूला।
अर्थात् जो व्यक्ति दिन-रात ईश्वर का स्मरण रखता है वह किसी दूसरे का स्मरण कैसे रख पाएगा। दूसरे व्यक्ति की याद आई अर्थात् जिसके लिए तुम जी रहे थे वह गौण हुआ तब तीसरे की याद आ गई। भगवान को याद रखने वाला व्यक्ति भागवान को कैसे याद रख पाएगा।
___ रोहिणी की शादी जब चन्द्रदेवता से हुई तो कहते हैं कि उसकी छब्बीस या सत्ताईस बहनों की शादी भी चन्द्रदेव से हुई थी। लेकिन चन्द्रदेव केवल रोहिणी को चाहते थे। एक दिन रोहिणी ने अश्रु बहाते हुए अपने पति से कहा - हे देव ! आपके साथ मेरी अन्य बहनों की भी शादी हुई है लेकिन आप उन्हें देखते तक नहीं हैं। आप उन्हें भी तो प्यार किया करें, उन्हें भी तो कुछ समय दिया करें । चन्द्रदेव ने कहा - दिल तो एक है और इस एक दिल में एक को ही रखा जा सकता है, एक दिल में दस-बीस को तो नहीं रखा जा सकता। अगर प्रकृति मुझे दस-बीस दिल देती तो मैं तुम्हारी सारी बहनों को एक-एक दिल दे देता। ___इसी तरह अन्य घटना है - उद्धव गोपियों के पास गये हुए थे। वे टिप्पणियाँ करते कि तुम्हारे घर में कोई है नहीं क्या जो तुम दिन-रात इस गोविंद के पीछे पागल बनी रहती हो । तब गोपियाँ कहती थीं - ऊधौ, मन न भये दसबीस । हे उद्धव, हमारे पास कोई दस-बीस मन तो हैं नहीं जो हम सबको बाँटते फिरें । मन तो एक था जो वह हरिहर हरण करके ले गया। इस तरह दिल तो एक है, अगर भगवान का महत्त्व है, धर्म का महत्त्व है तो उसे बसा लें। धर्म और धन, संन्यास और संसार दोनों एक साथ नहीं चल सकते। दो नावों की सवारी महँगी पड़ जाएगी। तब न माया मिलेगी न ही राम।
हमारा लक्ष्य अगर मुक्ति है तो हमें हर कदम फूंक-फूंककर कर रखना पड़ेगा, सचेतनता के साथ जीना होगा। गृहस्थ के लिए दान और पूजा सबसे सरल धर्म है। धर्म के और भी कई चरण हो सकते हैं लेकिन उन सभी को शब्दों में ढालना हो तो दो ही शब्द आ पायेंगे - एक दान, दूसरा पूजा । दान यानी दूसरों की मदद । चूँकि गृहस्थ व्यक्ति के पास ही परिग्रह होता है, सामान, धन होता है इसलिए उसका पहला धर्म बनता है कि वह अपनी ओर से दूसरों की
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