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________________ | अलावा अन्य कोई विकल्प न बचा था। सर आप मुझे मार लें पर कृपा कर उस बच्चे को अस्पताल पहुँचा दें। उस आदमी को गुस्सा आया हुआ था, वह कार बैठा और जैसे ही दरवाजा बंद करने लगा कि उस लड़के ने अपना हाथ फँसा दिया। उसका हाथ लहुलूहान हो गया । वह दरवाजा बंद न कर पाया, मज़बूर होकर वह बाहर निकला । उस लड़के ने कार मालिक के पैरों में गिरकर कहा सर, मैं नहीं जानता कि वह लड़का कौन है, मेरा उससे कोई स्वार्थ भी नहीं है, वह मर जाएगा, आप मदद कर दीजिए। कार मालिक को तभी उस लड़के के आह की, कराह की आवाज़ सुनाई दी। वह चौंका, क्योंकि यह आवाज तो उसके अपने बेटे के जैसी लगी। वह दौड़कर उसके पास पहुँचा । वहाँ देखा वह तो उसका अपना ही लड़का था। तुरंत कार में डाला गया, अस्पताल लेकर गए । वहाँ ख़ून की ज़रूरत आ पड़ी । पिता का ब्लड ग्रुप बच्चे से न मिल सका तब उस लड़के ने अपना खून देने की पेशकश की कि वह तो नहीं जानता कि यह लड़का कौन है पर अगर उसका ख़ून काम आ सके तो वह देने को तैयार है । उसके ख़ून की जाँच हुई, ग्रुप मिल गया। अब उस लड़के का खून घायल लड़के को चढ़ाया गया। इधर का खून उधर जा रहा था। तभी कार मालिक ने सोचा कि आज मैंने नई कार खरीदी थी, उसी खुशी में लड़के को लेने जा रहा था कि सबसे पहले अपने बेटे को चढ़ाएगा पर अब वह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि जब वह यहाँ से निकले तो अपनी कार में किसे पहले बिठाए अपने बेटे को या बेटे की जान बचाने वाले लड़के को । Jain Education International - जो दूसरे की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझ लेते हैं वही सच्चे अहिंसक होते हैं। सच्ची दया, सच्ची करुणा उन्हीं में पैदा होती है। इसी करुणा से प्रेरित होकर महावीर जैसे महापुरुषों ने मानवता के कल्याण के लिए, समाज को अपने ज्ञान की रोशनी बाँटी । वरना उन्हें क्या ज़रूरत थी, जिसने अखंड साढ़े बारह वर्षों तक मौन रखा, जंगलों में रहे, फिर समाज में आकर, इन्सानों के बीच आकर अपना ज्ञान बाँटने की । यह उनकी महाकरुणा थी कि उन्होंने ज्ञान की रोशनी बाँटी। हम सभी उन महापुरुषों की करुणा के कृतज्ञ हैं कि जिस ज्ञान को पाने के लिए उन्होंने इतनी साधना की, उस साधना से प्राप्त ज्ञान उन्होंने हमें भी दिया । हमें तो वह ज्ञान मुफ़्त में ही मिल गया । जो ज्ञान उन्होंने पाया, उसके लिए कठोर तपस्या की, पर हमें तो बिना साधना के ही केवल उनकी शरणागति ११२ For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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