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________________ कहते हैं राजकुमार बुद्ध रथ पर बैठकर राजमहल से निकले थे तब उन्होंने एक प्रसूतिग्रस्त महिला को देखा, उसकी पीड़ा को समझा और उन्हें एहसास हुआ कि जन्म एक दुःख है। वे थोड़े और आगे चले । उन्होंने देखा एक आदमी वमन कर रहा है, तो पता चला कि रोग भी एक दुःख है । उन्होंने किसी को लाठी के सहारे चलते देखकर पाया कि बुढ़ापा भी दुःख है । एक अर्थी को जाते हुए, उसके पीछे रोते हु लोगों को देखकर उन्हें अहसास हुआ कि मृत्यु भी दुःख है। महावीर ने भी इस दुःख को जाना और कहा संसार में सर्वत्र दुःख ही दुःख दिखाई दे रहा है। संसार का नाम ही दुःख में बहना है । जो दुःख में बहते हैं फिर भी सुख के मधुबूँद का स्वाद ढूँढते रहते हैं, यही संसार है । महावीर, दुःखों के बीच सुख का क्या राजद्वार हो सकता है उसे ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं । महावीर के शब्द हैं जन्म दुःख है, बुढ़ापा दुःख है, रोग दुःख है, मृत्यु दुःख है। अहो ! संसार दुःख ही है जिसमें जीव क्लेश पा रहे हैं । महावीर कहते हैं - जीव जन्म-मरण और उनसे मिलने वाले दुःख को भी जानता है फिर भी जानते - बूझते हुए भी वह विषयों से विरक्त नहीं हो पाता । उस मधुबूँद का स्वाद फिर-फिर इन्सान को अपने करीब बुला लेता है। - बुद्ध का चचेरा भाई राजमहल में ही था। जब बुद्ध महल में आए तो वह उनके स्वागत के लिए खड़ा हुआ, उस समय उसकी पत्नी स्नान कर रही थी। जब वह नहाकर आई तो राजकुमार उसके बालों को सहला रहा था कि तभी बुद्ध आ गए। जब बुद्ध आए तो स्वागत के लिए जाना ही पड़ा । बुद्ध को महल में आहारचर्या करवाई गई। सम्मानवश चचेरा भाई उन्हें विदा करने के लिए साथ में चल पड़ा। जैसे ही वह निकलने लगा तो पत्नी ने कहा- तुम जा तो रहे हो, पर मेरे सिर के बाल सूखें इसके पहले लौटकर आ जाना । बुद्ध के साथ राजकुमार चला गया। जहाँ वे पहुँचे वहाँ बुद्ध ने वैराग्य भरी बातें कहीं, जिसे सुनकर कई लोग प्रभावित हुए, भिक्षु बन गए । बुद्ध ने अपने चचेरे भाई से भी पूछा । वह शरम के कारण इन्कार न कर सका । उसे भी भिक्षु बना दिया गया। वह भिक्षु तो बन गया लेकिन जब तक वह जिया अपनी पत्नी के इन शब्दों को न भूल पाया कि 'जब तक मेरे बाल सूखें इसके पहले तुम लौटकर आ जाना।' इसी का नाम माया है, मोह है, मूर्च्छा है । व्यक्ति नहीं भूल पाता, प्रेम ११० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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