SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 ओर से यही कोशिश रखना है कि जितना हो सके उतना अधिक से अधिक सम्मान देने का प्रयत्न करेंगे। हाँ, असम्मान हो जाए तो प्रतिक्रमण किया जाए कि आज आपसे किसी का असम्मान हो गया । द्वार पर कोई संत आए या भिखारी, दोनों को सम्मान दो । अगर दरिद्र और भिखारी को कुछ नहीं दे पाते हो तो सम्मानपूर्वक उससे क्षमा माँगकर विदा कर दो। दरिद्र के पास भी आत्मा होती है और हममें से किसी को भी किसी की आत्मा का अपमान करने का अधिकार नहीं है । जैसे हमें अपना अपमान अच्छा नहीं लगता वैसे ही भिखारी को भी उसका अपमान अच्छा नहीं लगता। बच्चों से भी प्यार और सम्मान की बात करें, हर वक्त क्या डाँटते रहना । सास बहू के साथ सम्मान से पेश आए, हर वक्त किच-किच न करे अन्यथा बहू या तो ज़वाब देने लगेगी या सुनेगी ही नहीं। कभी-कभी अगर कोई कुछ कह भी दे तो उसे माफ़ किया जा सकता है। रोज़-रोज़ कड़क भाषा का प्रयोग करने से राग-द्वेष के अनुबंध प्रगाढ़ होंगे । पति - पत्नी को भी एक सीमा तक ही दाम्पत्य का सेवन करना चाहिए अन्यथा राग और मोह के बंधन इतने प्रगाढ़ हो जाएँगे कि वह कामान्धता भव-भवान्तर तक पीछा नहीं छोड़ेगी। अगर आपका असम्मान हो जाए तो पहले चरण पर - सहजता पर आ जाना लेकिन हमारी ओर से तो सम्मान ही दिया जाना चाहिए । सम्मान दो, मधुर भाषा का उपयोग करो । तीसरी बात 'प्रेम से जीओ' । चार दिन की ज़िंदगी है । प्रेम करने के लिए ज़िंदगी छोटी पड़ती है । उसमें वैर-विरोध डालकर जिंदगी क्यों बर्बाद करते हो । द्वेष निम्न वस्तु है, इन्सानियत से गिर जाने की वस्तु है । द्वेष दो कारणों से पैदा होता है । क्रोध और ईर्ष्या के कारण । राग भी दो कारणों से पैदा होता है - मोह और लोभ के कारण । और अगर राग-द्वेष चलते रहे तो हमारा भव-चक्र भी चलता रहेगा । - मोह और लोभ से, क्रोध और ईर्ष्या से निकलकर क्यों न हम अपना सहज जीवन जीएँ । क्यों न इसका विवेक रखें कि आप सबसे प्रेम करेंगे, सबको सम्मान देंगे तब क्रोध आएगा ही नहीं । भगवान ने सामायिक की प्रेरणा ही इसीलिए दी है कि विपरीत स्थितियों में भी सामाि समता रख सको, सहनशीलता रख सको । अड़तालीस मिनट तक आसन पर स्थिर होकर बैठना ९८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy