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प्रेम करना हो या किसी की प्रशंसा, कृतज्ञता-ज्ञापन करना हो या मैत्री-भाव आदमी इन सब मामलों में कंजूस बना रहता है। अगर कोई अहंकारी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को प्रभावी बनाना चाहता है तो इसके लिए जरूरी है कि वह अपने जीवन में मानवीयता, सहृदयता, जैसे गुणों को धारण करे। मैं तो जब भी किसी शख्स से मिलता हूँ तो सोचता हूँ कि किसी न किसी बात में वह मुझसे बढ़कर है और मैं वह सद्गुण उससे पाने का प्रयास करता हूँ। अच्छा होगा आदमी अपनी जिंदगी के घर से अहंकार को अटाले की तरह बाहर फैंक दे ताकि वह एक बेहतर इंसान बन सके।
हम लोग कहते हैं कि दूसरा कोई गलती करे तो हमें गुस्सा आता है लेकिन सच्चाई यह नहीं है। अगर गलती पर गुस्सा आए तो खुद की गलती पर भी गुस्सा आना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता। आप सड़क पर चल रहे थे, किसी पत्थर से आपके ठोकर लग गई और अंगूठे से खून बहने लगा। बताइये, अब आप किस पर गुस्सा करेंगे? आप चेहरे पर खुजली कर रहे थे कि अचानक नाखून आपकी आँख में गड़ गया। बताइये, अब आप किस पर गुस्सा करेंगे? आप भोजन कर रहे थे और जीभ दांत के बीच में आ गई, अब आप किस पर गुस्सा करेंगे? गलती पर आदमी को गुस्सा नहीं आता। गुस्सा तो तब आता है जब व्यक्ति के अहंकार को चोट लगती है। झुकता वही है, जिसमें जान है
तुमने अपनी पत्नी से कहा कि आज ऐसा-ऐसा कर देना और अगर वह भूल गई तो तुम्हें गुस्सा आएगा क्योंकि तुमने कहा और उसने नहीं किया। इससे तुम्हारे अहंकार को चोट लगी और तुम उबल पड़े। व्यक्ति की अपेक्षा जब उपेक्षित होती है तब उसे गुस्सा आता है। व्यक्ति के अहंकार को चोट लगती है तो गुस्सा आता है। और तो और, जब उसका अहंकार असंतुलित होता है तब भी वह गुस्से से भर उठता है। याद रखें, ताला दो तरह से खुलता है - एक चोट से, दूसरा चाबी से। अहंकार और क्रोध हथौड़े हैं जो टक्कर मारते हैं और प्रेम रूपी ताले को तोड़ डालते हैं। आप अपने अहंकार और क्रोध से एक बार तो किसी से काम करवा सकते हैं लेकिन अन्ततः वह आपसे टूट जाएगा।
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