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________________ बाहर मुस्कान तो घर में क्रोध क्यों? ___ कुछ लोगों की कुछ विचित्र आदत होती है। वे बाजार में, ऑफिस में, दुकान में या दोस्तों के बीच सदा प्रसन्न और मुस्कुराते रहेंगे पर घर पहुँचते ही गंभीर और गुस्से से भरे हुए हो जाएँगे। वे छोटी-छोटी बातों पर घर में गुस्सा करेंगे और घर की शांति को भंग करेंगे। आप घर में बड़े हैं तो उसका अर्थ यह नहीं है कि हर समय आप हो-हल्ला करें या अपने बड़प्पन को जताने के लिए घर के वातावरण को कलुषित करें। आपकी बड़ाई इसमें है कि आप घर में अपने परिवार के सदस्यों को इतना प्रेम दें कि वे आपके जाने पर आपकी शीघ्र पुर्नवापसी की कामना करें। आप नहीं जानते कि आप बार-बार गुस्सा करके अपने खुशहाल घर को नरक बना देते हैं और परिवार का हर सदस्य भीतर ही भीतर आप से टूटा रहता है। फिर स्थिति यह होती है कि जब आप सामने होते हैं तो सबं लोग आपसे दबे रहते हैं और आपके बाहर जाने पर आपकी मज़ाक उड़ाई जाती है। पत्नी कहती है, 'छोड़ो, अब उनकी बातों पर कौन ध्यान दे क्योंकि 'हो-हल्ला' करना तो उनकी आदत ही बन गई है।' मुझे याद है, एक व्यक्ति जो गुस्सा बहुत किया करता था। पत्नी भी कम न थी। एक दिन पत्नी ने रात ग्यारह बजे अपने पति को नींद में से उठाया और हाथ में एक दूध का गिलास देते हुए कहा, 'लो दूध पी लो।' । पति ने कहा, 'आज क्या बात है, जीवन में कभी तूने रात को दूध नहीं पिलाया, आज अचानक प्रेम कैसे उमड़ आया।' पत्नी ने कहा, 'जी! छोड़ो प्रेम-रोम की बातें। अभी-अभी मैंने कलैण्डर देखा, आज नाग पंचमी है, तो रात को साँप कहाँ से लाऊँ दूध पिलाने। तो तुमको ही.....।' मुझे याद है कि एक व्यक्ति हर समय घर में गुस्से में ही रहता था। एक दिन उसने अपनी पत्नी से कहा, 'मैं पड़ौस के शहर में जा रहा हूँ। दो दिन में वापस लौट आऊँगा।' क्या आप बताएँगे कि उसके ऐसा कहने पर पत्नी ने मन में क्या सोचा होगा? तब शायद उसने सोचा होगा कि दो दिन नहीं बल्कि दस दिन बाद भी आओ तो भी कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि तुम जितने बाहर रहते हो, घर में उतनी ही शान्ति रहती है। 49 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003878
Book TitleKaise Sulzaye Man ki Ulzan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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