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हमारी अन-बन बढ़ती गई जिसके कारण मैं चिंतामुक्त नहीं रहता हूँ। मुझे जिंदगी भार-भूत लगने लग गई है। जब मैंने उनकी पत्नी से बात की तो उसने बताया कि ये अपने ही कारण दुःखी हैं। छोटी-छोटी बातों पर इतनी ज्यादा सिर खपाई करते हैं कि खुद तो दु:खी होते ही हैं, पूरे घर को नरक बना देते
कोई बड़ी बात हो जाय और हम अपनी ओर से कोई टिप्पणी करें तब तो बात शोभा भी देती है लेकिन छोटी-मोटी बातों पर सिरखपाई करते रहोगे या छोटी-मोटी बातों को समझ नहीं पाओगे तो निहायत खुद भी दुःखी हो जोओगे और औरों को भी दुःखी करोगे।
कुल मिला कर निराशावादी दृष्टिकोण, हीनभावना, मन मैं बैठा हुआ भय, हर समय दुःखदायी विचारों में डूबे रहना, वैर की गाँठों को बाँधना अथवा छोटी-मोटी बातों को सही तरीके से नहीं समझना ही चिंता का मूल कारण है। याद रखें, किसी निश्चय/निष्कर्ष पर पहुँचना चिंतन का उद्देश्य है लेकिन निश्चय हो जाने के बाद भी उसी बिंदु पर सोचते रहना चिंता का मूल कारण बन जाता है। चिंता एक, रोग अनेक
ऐसे कुछ उपाय हैं जिन्हें अपनाकर हम चिंता से मुक्त हो सकते हैं पर इसके लिए जरूरी है कि पहले हम यह समझें कि इसके कौन-कौन से गम्भीर दुष्परिणाम हो सकते हैं । चिंता से जीवन में कई सुनहरे अवसर हाथ से निकल जाते हैं और निजी जीवन कटुता से भर जाता है। चिंताग्रस्त व्यक्ति केवल एक ही काम कर सकता है और वह है- 'हर बात पर चिंता'। हमारी शारीरिक
और मानसिक शक्तियों को कमजोर कर चिंता हमें कर्महीन तो करती ही है, साथ ही साथ हमारे भीतर ऐसे हानिकारक भावावेग भी पैदा करती है जिनसे हमारा स्वास्थ्य खराब होता है। मनुष्य के भीतर मनोवेग अच्छे व बुरे विचारों से पैदा होता है। संतोष, सहनशीलता, प्रसन्नता, हँसी, मेल-मिलाप, साहस, सेवा और प्रेम आदि से हमारे भीतर अच्छे आवेग पैदा होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। भय, चिंता, घृणा, दंभ, निराशा, निंदा,
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