SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ याद हो आएगी और इस तरह तुम्हारा हर कार्य तुम्हें मानसिक तौर पर बैचेन करता रहेगा। चिंता हृदय में लगी हुई वह आग होती है जिसकी पीड़ा को वही जान सकता है जो उसमें झुलस रहा होता है। उसके कारण कई सुनहरे अवसर हाथ से छूट जाते हैं और खुशियों के दिन बीत जाया करते हैं । प्रकृति की व्यवस्था है कि जो जन्म देता है, वह जीवन की व्यवस्था भी कर देता है- 'चोंच देई सो चून हू देगो' । जो चोंच देता है वह चुग्गा भी देता है । इसके बावजूद व्यक्ति भविष्य की कल्पनाओं और अतीत की स्मृतियों में डूबा हुआ चिंता, अवसाद और घुटन को भोगता रहता है । आखिर क्या कारण हैं चिंता के ? निवारण से पहले समझें कारण मेरी नजर में चिंता का सबसे बड़ा कारण है हमारा निराशावादी दृष्टिकोण । व्यक्ति सफलताओं की ओर बढ़कर भी बार-बार इसलिए असफल हो जाता है क्योंकि उसके भीतर घर कर चुकी निराशा उसे सफलता के अंतिम चरण में लाकर वापस लौटने को मजबूर कर देती है । अगर व्यक्ति छोटी-छोटी रुकावटों को देखकर निराश हो जाता है तो उसका चिंतित होना स्वाभाविक है । सदा याद रखें प्रयास करना मनुष्य का कर्त्तव्य होता है लेकिन उस प्रयास का परिणाम देना किसी और के हाथ में होता है । जितनी गंभीरता से व्यक्ति परिणाम को देखना चाहता है, संभवतः उतनी गंभीरता से वह प्रयास नहीं करता । मैंने देखा है कि हम लोग प्राय: किसी भी कार्य में असफल हो जाने पर तकदीर का ही दोष बताते हैं । अच्छा होगा यदि हम अपने भाग्य का रोना रोने की बजाय कार्यशैली के जो दोष रहे हैं, उन दोषों को पहचानें । हजार रुकावटें और मुसीबतें आने के बावजूद जो व्यक्ति धैर्य को बरकरार रखता है वह कभी चिंताओं के मकड़जाल में नहीं उलझा करता । निराशावादी दृष्टिकोण वाले व्यक्ति को फूल के इर्द-गिर्द काँटे ही नजर आएँगे और आशावादी व्यक्ति को काँटों के बीच भी फूल ही नजर आएगा । व्यक्ति दुकान खोलता है, ऑफिस चलाता है, कोई फैक्ट्री या किसी संस्थान की योजना प्रारम्भ करता है Jain Education International 26 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003878
Book TitleKaise Sulzaye Man ki Ulzan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy