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________________ समस्या का हल नहीं अपितु अपने आप में एक बड़ी समस्या है। जैसे-जैसे यह हमारे जिंदगी में पाँव पसारना शुरू करती है वैसे-वैसे यह तन-मन धन तीनों को ही खाना शुरू कर देती है। चिंताग्रस्त व्यक्ति जी-जीकर भी जीवन भर मरने को मजबूर होता है। कई बार तो वह इतना अधिक टूटा हुआ, उदास और बैचेन हो जाता है कि उस व्यक्ति की जिंदगी को देखकर हमें दया आने लगती है। पद, प्रतिष्ठा, पहचान, पैसा इन सबको पाने की अकूत चाहना हमारे मन की अशांति का मूल निमित्त बनती है। पहले का मनुष्य कम चिंतित था, क्योंकि उसकी जिंदगी में उलझनें कम थीं। उसकी इच्छाओं की सीमा थी और फिजूलखर्ची पर रोक थी। लेकिन आधुनिक युग का मनुष्य जैसे-जैसे विकास करता चला गया वैसे-वैसे चिंता उसकी पिछलग्गू बन गयी। मैं मानता हूँ कि हमारी आधुनिक सभ्यता ने हमें अनेक सुख-सविधाएँ दी हैं पर साथ ही साथ हमारी मन की खुशियों को चूसने वाली चिंता भी दी है। इससे हमारा परिवार प्रभावित होता है, व्यवसाय प्रभावित होता है और हमारा सामाजिक स्वरूप भी प्रभावित होता है। धीरेधीरे चिंता हमारे जीवन की आदत बन जाती है। चिंतन करें, चिंता छोड़ें यद्यपि हम सभी इस चिंता के रोग से ग्रस्त हैं फिर भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर यह चिंता होती क्या है? चिंता कोई शारीरिक रोग नहीं है अपितु घटित या घटने वाले किसी बिन्दु पर लगातार सोचने पर होने वाला मानसिक तनाव ही चिंता है। किसी कार्य पर चिंतन करने से वह आराम से पूर्ण हो जाता है किंतु उसी कार्य की लगातार चिंता करते रहने से वह दुरूह होने लगता है। अगर व्यक्ति जीवन में स्वास्थ्य, सुख और सफलता को प्राप्त करना चाहता है तो इसके लिए जरूरी है कि वह अपने जीवन में चिंता पर विजय प्राप्त करे। हमारी यह मानसिकता रहती है कि अगर हम किसी बिन्दु पर बारबार सोचेंगे तो उसका कोई समाधान निकलकर आ जाएगा पर इसमें एक सावधानी रखने की बात यह है कि अगर हम किसी भी बिंदु पर सकारात्मक 23 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003878
Book TitleKaise Sulzaye Man ki Ulzan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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