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________________ उसे पढ़ा। उसे लगा कि मुफ्त में माल खाने का यह सबसे अच्छा अवसर है। मेरी तो शादी ही नहीं हुई है। यह बिल का भुगतान किससे लेगा? वह भीतर गया, जम के मनपसंद भोजन किया। बाहर जाने लगा तो होटल के मैनेजर ने सात सौ रुपये का बिल पकड़ा दिया। वह चौंका। उसने कहा, 'आपने बाहर लिखा है कि जी भर के खाओ, भुगतान बेटे पोतों से लिया जाएगा फिर मुझे बिल क्यों दिया जा रहा है?' होटल के मैनेजर ने कहा, 'जनाब, यह आपका खाने का बिल नहीं है। यह तो आपके बाप-दादा खाकर गये उनका बिल है।' उसे लगा कि आज बुरे फंसे। जीवन-भर याद रखें, मुफ्त के मालपुए खाने की बजाय परिश्रम की रूखी-सूखी रोटी बेहतर होती है। चिंता-तनाव : डुबाए जीवन की नाव तनाव से बचने के लिए बेवजह की चिंताओं से भी बचें। कोई काम करना हो तो उस पर व्यक्ति सोच कर निर्णय ले ले, यह तो उचित है, लेकिन किसी भी बिंदु पर केवल सोचते रहना और निर्णय न ले पाना अपने मस्तिष्क पर जानबूझ कर बोझ डालना है। वास्तव में चिंता व्यक्ति को तब सताती है जब कोई कार्य हमारी इच्छा या अपेक्षा के अनुकूल न हो रहा हो। व्यक्ति एक ही बात को जब बार-बार अपने भीतर घोटता रहता है तो उसके परिणामस्वरूप वह तनाव में आ जाता है और कभी-कभी तो बिना किसी ठोस कारण के मात्र किसी भावी अनिष्ट की आशंका से व्यक्ति चिंता में डूब जाता है। ऐसी स्थिति में तो तनाव और भी गहरा हो जाता है जब व्यक्ति हर पहलू पर नकारात्मक दृष्टि से सोचता है। हर समय प्रसन्न रहना और छोटी-मोटी बातों की चिंता करने की बजाय उन्हें भुला देना ही तनाव-मुक्ति की अमृत औषधि है। जो कुछ और जैसा भी हमको मिला है उसी में संतुष्ट रहना अगर मनुष्य को आ जाए तो तनाव की आधी बीमारी खत्म हो सकती है। आपके पास खुशी का कोई साधन नहीं है तो भी आप मुस्कुराते हुए बच्चे को देखकर प्रसन्न हो सकते हैं। खिले हुए फूल व खेत-खलिहान को, पर्वत-नदियों व प्राकृतिक सौन्दर्य को देखकर खुश हो सकते हैं और तो और, उगते हुए सूरज, खिला हुआ चांद और टिमटिमाते तारों को देखकर भी हम प्रसन्न हो सकते हैं। 20 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003878
Book TitleKaise Sulzaye Man ki Ulzan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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