________________
होता है रोग का, विशेषकर उन रोगों का जो लाइलाज होते हैं- जैसे कैंसर, एड्स। इन खतरनाक रोगों के बारे में सोचकर भी व्यक्ति भयभीत हो जाता है। अब तक के अनुभव हमें यह बता चुके हैं कि भयभीत व्यक्ति जहाँ उन रोगों से घिरकर जल्दी पस्त हो जाता है, वहीं व्यक्ति निर्भय चित्त होकर इन पर कुछ अंश तक विजय भी प्राप्त कर लेता है। तेज का नाश करे उत्तेजना
उत्तेजना तनाव का तीसरा कारण है। कुछ लोगों की आदत पटाखों की तरह होती है कि एक तीली लगाई और बम फूटा। उन्हें कुछ भी कहा नहीं कि बस लड़ने-भिड़ने को पहले से ही तैयार! ऐसा लगता है कि बस अब बरसे कि तब बरसे। जो छोटी-छोटी बातों में उत्तेजित हो जाते हैं, उनके जीवन में शांति का अभाव होता है। हमने आज के युग में तकनीकी चमत्कारों से बहत कुछ पाया है किन्तु यदि कुछ खोया है तो केवल मन की शांति को। सुखसुविधा की चकाचौंध में शांति के मार्ग, मौन के मार्ग, साधना के मार्ग और जीवन की सहजता के मार्ग हमारे हाथ से फिसल गए हैं। चारों ओर अशांति का साम्राज्य है। आशंका, आवेश, आग्रह ये सब उत्तेजना के इर्द-गिर्द घूमते. रहते हैं। जो व्यक्ति किसी के दो कड़वे शब्दों को शांति से सहन नहीं कर सकता वह जीवन में कभी भी मन की शांति का मालिक नहीं बन सकता। दूसरों की बातों पर गौर न करते हुए अपनी ही बात का आग्रह करते रहना और छोटी-मोटी बातों में क्रोधित और उत्तेजित हो जाना तनाव के प्रारम्भिक लक्षण हैं। भगवान महावीर अगर अपने कानों में कीलें ठुकवा सकते हैं और श्रीकृष्ण शिशुपाल की निन्यानवें गलतियों को माफ कर सकते हैं तो क्या हम किसी के दो कड़वे शब्द सुनने और किसी की नौ गलतियों को माफ करने का बड़प्पन नहीं दिखा सकते? परिवार में रखिए वैचारिक संतुलन
तनाव का एक और कारण होता है जो केवल व्यक्ति को ही नहीं पूरे परिवार और समाज को तनावग्रस्त कर देता है और वह है 'हमारा वैचारिक असामंजस्य'। हम एक दूसरे के विचारों का न तो सम्मान कर पाते हैं और न
8
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org