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________________ बोलने वाले को ऐसी स्थिति में ही नहीं आना पड़ता। जब जरूरत हो तब अपनी वाणी का उपयोग करें अन्यथा मौन रहना सर्वाधिक लाभकारी है। ___ किसी से बात करें तो मजाक उड़ाते हुए नहीं करें बल्कि सलीके के साथ, सभ्यता, विवेक और शिष्टता के साथ। हमारी भाषा शिष्ट, इष्ट और मिष्ट हो। भाषा पवित्र और निर्मल हो । व्यंग्यात्मकता से दूर रहने वाली हमारी भाषा सरल और सहज हो। कटाक्ष नहीं, मिठास हो अक्सर ऐसा होता है कि हम अनायास किसी अवसर पर बिना सोचेसमझे कुछ बोल देते हैं, जिस पर बाद में हमें आत्म-ग्लानि होती है और पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाता। हमारी यह कोशिश रहनी चाहिये कि हमारे संवाद ऐसे हों जो दूसरों को चोट न पहुँचाएं। कटाक्ष की बजाय संयम की भाषा का प्रयोग करें। अगर विपरीत वातावरण में थोड़ा-सा मौन रहने का अभ्यास रखें, तो आपके हित में होगा। मौन रहना दुष्कर तो है, पर यह एक तरह की दैवीय अनुभूति देता है। खान-पान की मर्यादा तीसरी मर्यादा है। कब कितना खाना, आप इसका भी विवेक रखें। जितनी भूख हो उससे कम खाएँ लेकिन यह भी देखें कि क्या खा रहे हैं? विवेक रखें कि कितनी सीमा तक खाना है? एक, दो, तीन, चार या और अधिक कितनी बार? या दिन भर ही मुँह चल रहा है। नियम से खायें - सुबह हल्का नाश्ता लें, दोपहर में खाना खाएँ फिर एक बार और हल्का-फुल्का नाश्ता कर सकते हैं और अंत में शाम को खाना लें। मेरे खयाल से इतना पर्याप्त है। अगर आप दिन में चार ही बार खाने की मर्यादा रखेंगे तो सड़क पर चलते हुए समोसे की गंध आपको ललचायेगी नहीं। माना कि मिठाई मुफ्त की है लेकिन पेट तो आपका अपना है। कैदी हैं या नेता? इन्द्रियों का उपयोग करो, लेकिन संयमपूर्वक। यह देख लो कि तुम इन्द्रियों के अनुसार चलते हो या इन्द्रियाँ तुम्हारे अनुसार चल रही हैं। मुझे याद है - एक व्यक्ति के आस-पास पांच पुलिसवाले चल रहे थे। किसी बच्चे ने यह दृश्य देखकर अपने पिता से पूछा, 'पिताजी, यह आदमी _133 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003878
Book TitleKaise Sulzaye Man ki Ulzan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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