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________________ चलती चक्की देख कर दिया कबीर रोय। दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय॥ संसार की चक्की में हर कोई पिसता जा रहा है। आप जानते हैं कि चक्की में भी कुछ गेहूं के दाने बिना पीसे रह जाते हैं। आखिर क्यों? क्योंकि वे कील के आसपास रह जाते हैं। इसी तरह जिसने संयम, मर्यादा, विवेक की कील का सहारा पकड़ा है, वे संसार की चक्की में पिसकर भी अखंड रहते हैं बाकी तो गये चक्की में और आटा बन गए पिसकर। आइए, अब हम देखते हैं हमारे जीवन की क्या मर्यादा है, जिन्हें हम सरलता से जी सकते हैं। एक तो वह होता है जो दिन भर राम-राम जपता है और दूसरा वह है जो राम की मर्यादाओं को जीता है। जब तुम राम से पूछोगे कि इन दोनों में से कौन उन्हें प्रिय है तो नि:संदेह वे मर्यादाओं को जीने वाले का ही नाम लेंगे। महावीर की पूजा करने वाला महावीर को कितना पाएगा पता नहीं, लेकिन उनके आदर्श और नैतिक नियमों को जीने वाला महावीर के पास ही रहता है। जानें कम, जिएं ज्यादा मर्यादाओं से जुड़ी जीवन की बातें प्रायः हर व्यक्ति जानता है। वह जानता है कि क्या अपनाया जाना चाहिए और क्या छोड़ा जाना चाहिए, लेकिन प्रमाद या आदतवश हम अपने संयम और विवेक को नजरअंदाज करते रहते हैं। सभी जानते हैं कि दूसरे को नहीं सताना चाहिए। रिश्वत नहीं लेना चाहिए और गलत दृष्टि नहीं डालनी चाहिए। बुरे काम करने वाले भी जानते हैं कि ये काम नहीं करने चाहिए, फिर भी वह जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करता है। इसलिए मैं निवेदन कर रहा हूँ कि जानबूझकर अनजान बनने की बजाय ज्ञात सत्य को जीवन में जीने का प्रयास करना चाहिए। हमें इस बात की खुशी नहीं है कि यहाँ इतने हजार आदमी सत्संग सुन रहे हैं। सत्संग को सुनकर लोगों का जीवन बदल रहा है, जीवनशैली बदल रही है। व्यक्ति किसी भी गलत काम को करने से पहले एक बार सोच रहा है। व्यक्ति एक बार भीतर का स्नान करे, गंगा को उतारने जैसा अपने भीतर भागीरथी प्रयास करे ताकि वह अपने अन्तर्मन को भी निर्मल व पवित्र 129 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003878
Book TitleKaise Sulzaye Man ki Ulzan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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