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पर अंग-अंग से मुस्कुराइए । यह वह टॉनिक है जिसे आप सुबह - सुबह लेंगे तो दिन भर प्रसन्न रहेंगे । यह एक मिनट की मुस्कान आपको भरपूर प्रसन्नता देगी।
दूसरा सूत्र है - 'जीवन को सहजता से जिएं'। जो हो जाए, वह ठीक है - ऐसा होना था सो हो गया, कोई बात नहीं । अगर व्यापार-व्यवसाय में घाटा भी हो जाए तो यह सोच लें कि जाना था सो चला गया। मेरे इस मंत्र को जीवन भर याद रखना कि जो तुम्हारा है वह कभी जा नहीं सकता और जो चला गया वह तुम्हारा था ही नहीं। फिर असहजता कैसी ! जो जैसा जिस रूप में मिला है, उसे सहज रूप से स्वीकार करें। जीवन सहजता, प्रसन्नता का ही रूप है।
प्रसन्नता का अमोघ अस्त्र है - 'प्रतिक्रियाओं से बचना ।' छोटी-मोटी घटनाओं को हँसी में टाले दें। गुरजिएफ ने अपने संस्मरणों में लिखा है - 'मेरे पिता मृत्युशैय्या पर थे तब उन्होंने मुझसे कहा, 'अभी तू बहुत छोटा है, मेरी बात नहीं समझ पाएगा लेकिन अमल में लाएगा तो समझने की जरूरत नहीं पड़ेगी।' फिर उन्होंने कहा कि 'कभी कोई ऐसी बात जिससे तुझे लगे कि इससे सामने वाले को या तुझे खुद दुःख होगा तो चौबीस घंटे ठहर जाना और फिर उस बात को कह देना ।' चौबीस घंटे तो क्या अगर आप चौबीस मिनट भी ठहर गए तो भी काफी है।
प्रतिकूल वातावरण बने तो यही सोचो कि अगर तुम उस वक्त वहाँ नहीं होते तो उन बातों का जवाब कौन देता? जैसे ही आप प्रतिक्रिया से बचते हैं, जीवन में दुःखों से भी बच जाते हैं ।
प्रसन्न रहने का अन्य उपाय है 'अपने सभी कार्यों को प्रसन्नता से करें, तन्मयता से करें ।' किसी भी काम को बोझ न मानें। जब आप काम को बोझ मानते हैं तो वह दुगुना बोझ महसूस होता है और प्रसन्नता के साथ करते हैं तो काम हल्का हो जाता है ।
स्वीकार करें, प्रकृति का सान्निध्य
जीवन में प्रकृति के सानिध्य में रहने की आदत डालें। हमने किसी एक ही व्यक्ति, वस्तु या स्थान से खुशियाँ जोड़ रखी थीं, संयोग से वह हमसे
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