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________________ राजा को दे दिया। राजा संत को देखने लगा। संत बोला – 'राजन्, जब मेरे गुरु का देह-विलय हुआ था तब उन्होंने मुझे यह ताबीज यह कहकर दिया कि इस ताबीज को तुम कभी मत खोलना, पर जिस दिन तुम्हें यह लगे कि जीवन में संकट का अंतिम दिन आ गया है और तुम इसका सामना करने में विफल हो गए हो तो उस दिन इस ताबीज को खोल लेना और यही तुम्हारे जीवन का परम सत्य होगा। सम्राट, आज तक मेरे जीवन में ऐसा मौका नहीं आया कि मैं इसे खोलूँ। अब मैं बूढ़ा हो चुका हूँ। पता नहीं कब चला जाऊँ इसलिये यह ताबीज मैं तुम्हें दे रहा हूँ। पर तुम भी याद रखना कि इस ताबीज को तुम भी तब ही खोलना जब तुम्हें लगे कि तुम्हारे जीवन में संकट का अंतिम पल आ गया है।' - यह कहकर वह संत चला गया। इधर सम्राट की रोज इच्छा होती थी कि ताबीज खोलकर देख ले लेकिन संत के वचन उसे ऐसा करने से रोक रहे थे। चार-पांच वर्ष बीत गए। वह ताबीज सम्राट की भुजा पर बँधा रहा। एक बार पड़ोसी राजा ने सम्राट के राज्य पर हमला कर दिया। युद्ध हुआ और सम्राट् हार गया। वह घोड़े पर बैठा और महल के पिछले दरवाजे से भाग छूटा। जब शत्रुसेना को पता चला कि सम्राट भाग गया है तो वे लोग भी जंगलों में उसे पकड़ने के लिये पीछे दौड़ पड़े। आगे सम्राट का घोड़ा और पीछे शत्रुसैनिकों के घोड़े। सम्राट को लगा कि अब शत्रु के सैनिक उसे पकड़ ही लेंगे। उसने और अधिक तेजी से घोड़ा दौड़ा दिया। सामने नदी आ गई। सम्राट को तैरना नहीं आता था। वह घोड़े से उतरा और छुपने की जगह खोजने लगा लेकिन आसपास ऐसा कुछ नहीं था जहाँ सम्राट् छिप सके। पीछे से घोड़ों के टापों की आवाज आ रही थी। सम्राट ने सोचा, 'यह मेरे जीवन के संकट का आखिरी पल है। फकीर ने कहा था - ऐसे पल में ताबीज को खोल लेना। उसने ताबीज तोड़ा, ढक्कन खोला तो देखा कि उसमें एक कागज था। सम्राट ने कागज खोला तो देखा उस पर लिखा था – 'यह भी बीत जाएगा। यही जीवन का सत्य है।' तभी उसने देखा कि घोड़ों के टापों की आवाज बन्द हो चुकी है। सैनिक मार्ग भटककर दूसरी दिशा में चले गए। राजा बार-बार उस कागज को पढ़ने लगा, यह भी बीत जाएगा। हाँ, यही जीवन का सच है - राजा सोचने . 106 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003878
Book TitleKaise Sulzaye Man ki Ulzan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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