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________________ उसका रूप अलग हो जाता है, तो दोपहर को अलग; सांझ को कुछ और ही और रात को किसी अन्य ही रूप में। जिस व्यक्ति को उसकी पत्नी ने सुबह दस बजे देखा, जब उसे ही रात को दस बजे वह देखती है, तो चौंक पड़ती है कि क्या यह वही है? व्यक्ति के कितने रूप हैं, पहचाने नहीं जा सकते! कोई व्यक्ति किसी के साथ पचीस साल जीकर भी यह नहीं कह सकता कि यही स्वरूप है इसका। औरों की तो छोड़ो, आदमी अपने आपको ही नहीं पहचान पाता। अरे, अभी जो व्यक्ति कुछ मिनट पहले सबसे प्यार से बोल रहा था, कहा नहीं जा सकता कि उसके अगले पल भी प्यार में ही बीतेंगे। शांतचित्त बैठे हुए व्यक्ति को बेटे अथवा नौकर के द्वारा फूट चुकी कांच की एक गिलास भी आग-बबूला कर देती है। वहीं, जहां घर में उद्विग्नता का वातावरण बना हुआ हो, द्वार-चौखट पर किसी आगंतुक के द्वारा बजने वाली घंटी दो पल में ही उस सारे वातावरण को बदल डालती है और इस तरह क्रोध-उलाहना और खिन्नता से संत्रस्त्र व्यक्ति हंसते-मुस्कुराते हुए आगंतुक के स्वागत के लिए प्रस्तुत हो जाता है। कितना विचित्र है-मनुष्य के चित्त का यह स्वरूप! पशुता और देवत्व : मन के ही पर्याय अपने चित्त और उसके व्यवहार के चलते ही व्यक्ति कभी प्रेत हो जाता है और कभी देव। प्रेत और देव कोई अलग हस्तियां नहीं हैं। ये दोनों मनुष्य के ही पर्याय और चुनौतियां हैं। मनुष्य स्वयं ही कभी प्रेत बन जाता है और कभी देव। मैंने प्रेतों को भी देखा है और देवों को भी। मुझे मनुष्य ही प्रेत नज़र आया है और वही देव। तुम कभी किसी व्यक्ति को गुस्से में लड़ते-झगड़ते देखो, तो तुम्हें सृष्टि के नक्शे में प्रेतों का पाताल देखने की अपेक्षा ही नहीं रहेगी। तुम कह उठोगे, क्या इंसान इतना क्रूर, अमर्यादित और उच्छृखल हो सकता है! आखिर दुनिया की धार्मिक किताबों में, जिन्हें भूत कहा जाता है, वे ऐसे क्रोधियों और हिंसकों से ज्यादा विकराल नहीं होते होंगे। वे भूत भी आखिर इन्हीं भूतों के परिणाम हैं। ये इंसानी भूत ही मरकर पाताली भूत बनकर धरती के देवों को सताने की कोशिश करते हैं। 96 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003877
Book TitleJiye to Aise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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