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कैसे करें चित्त का रूपांतरण
चित्त पर आत्मविजय प्राप्त करने के लिए सदा प्रसन्न रहें, अपनी श्वास-धारा पर सजग रहें।
मनुष्य एक है, किंतु उसका चित्त और चित्त की वृत्तियां अनेक हैं। चित्त
की विभिन्न अभिव्यक्तियों को देखकर ही हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि चित्त एक अथवा अखंड नहीं है। चित्त जीवन की आंतरिक व्यवस्था है और इस व्यवस्था में कई तत्त्व सहभागी बनते हैं। मनुष्य का चित्त जीवन के अत्यधिक सशक्त, किंतु अत्यंत सूक्ष्म तत्त्वों का समुच्चय है। हर चित्त अपने आप में शुभ-अशुभ परमाणुओं की ढेरी है।
चित्त बड़ा बहुरूपिया मनुष्य का चित्त परिवर्तनधर्मी है। वह कभी एक-सा नहीं रहता। जब-तब बदलते रहना उसका स्वभाव है। कब-कौन-से निमित्त की हवा चल पड़े और चित्त का कब-कौन-सा परमाणु मुखरित हो जाए, कहा नहीं जा सकता। चित्त बदलता है, परिस्थिति के अनुसार, बिल्कुल ऐसे ही कि जैसे गिरगिट अपना रंग बदलता है। मनुष्य का चित्त भी समय, क्षेत्र और परिस्थिति के अनुसार अपना स्वरूप बदलता है। यह क्रोध का निमित्त पाकर क्रोधित हो जाता है, तो करुणा का निमित्त पाकर दया। यह विकार का निमित्त पाकर विकृत हो जाता है, वहीं सौहार्द का निमित्त पाकर सुहृद्। क्रोध और
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