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________________ दोनों जीवन के ही पर्याय हैं। शांत चित्त स्वर्ग है, अशांत चित्त नरक; प्रसन्न हृदय स्वर्ग है, उदास मन नरक। हर प्राप्त में आनंदित होना स्वर्ग है, व्यर्थ की मकड़ लालसाओं में उलझे रहना नरक। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपने आपको नरक की आग में झुलसाए रखना चाहता है या स्वर्ग के मधुवन में आनंद-भाव से अहोनृत्य करना चाहता है। हम अपने शारीरिक और मानसिक रोगों से, आशंका, उद्वेग और उत्तेजनाओं से स्वयं को उपरत करें और जीवन को सत्यम्-शिवम्-सुंदरम् के मंगलमय पथ की ओर अग्रसर करें। जीवन के संपूर्ण सौंदर्य और माधुर्य के लिए केवल उसका रोगमुक्त होना ही पर्याप्त नहीं है, वरन् शारीरिक आरोग्य के साथ विचार और कर्म की स्वस्थता-स्वच्छता और समरसता भी अनिवार्य चरण है। शृंगार-प्रसाधनों को अथवा जूते-चप्पल-सैंडल और कपड़े के ऊंचे-नीचे पहनावे को सुख-सौंदर्य का आधार न समझें। स्वस्थ, सुंदर और मधुर जीवन के लिए हमें जीवन के बहुआयामी पहलुओं की ओर ध्यान देना होगा। आओ, हम ऐसे कुछ पहलुओं को जीने की कोशिश करें, जिनसे कि हमें हमारे जीवन का सच्चा स्वास्थ्य मिल सके। स्वस्थ जीवन के लिए सात्विक आहार स्वस्थ जीवन के लिए इस बात का सर्वाधिक महत्व है कि हम क्या खाते-पीते हैं। जब तक व्यक्ति यह नहीं समझेगा कि आहार कब-क्यों और कैसा लेना चाहिए, तब तक व्यक्ति जब-तब रोगों से घिरा हुआ ही रहेगा। आहार जीवन के वाहन का ईंधन है। आहार करने का अर्थ यह नहीं कि जब-जो मिल गया, तब वह खा लिया। पेट कोई कूड़ादान नहीं है। सही ईंधन के अभाव में यंत्र की व्यवस्था गड़बड़ा सकती है। स्वस्थ जीवन के लिए भोजन को संतुलित और सात्विक होना जरूरी है। आखिर जैसा हम खाएंगे, वैसा ही तो परिणाम आएगा। बर्तन पर जैसा चिह्न उकेरेंगे, वही उभर कर आएगा। मन के परिणाम अगर विकृत हैं, तो मानकर 19 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003877
Book TitleJiye to Aise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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