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________________ मधुर जीवन के मूलमंत्र जीवन को कुछ इस तरह जिएं कि जीवन स्वयं प्रभु का प्रसाद और वरदान बन जाए । -ख-शांतिपूर्वक जीवन-यापन करना जीवन की श्रेष्ठ उपलब्धि है। दुनिया लोग हैं, एक वे जो जीवन के भूखे हैं, दूसरे वे सुख 1 से जीने के लिए तरस रहे हैं । जो औरों के जीवन के भूखे हैं, वे भी रुग्णचित्त हैं और जो जीने के लिए तरस रहे हैं, वे भी किसी-न-किसी मानसिक अथवा व्यावहारिक विपदा के रोग से घिरे हुए हैं। दुनिया में दुःख के बहुतेरे रूप हैं किसी के घर संतान पैदा होने से थाली बजती है, तो किसी के घर बच्चा पैदा होने पर आंसू ढुलकाए जाते हैं, यह सोचकर कि पहले से ही छ: हैं, अब सातवें का भरण-पोषण कैसे होगा ! संभव है कि जन्म किसी को सुख भी दे दे, पर रोग, भुखमरी, बेरोजगारी, बुढ़ापा और मृत्यु की घटना भला किसे सुख देती होगी! दुनिया में लाखों-करोड़ों अस्पताल और चिकित्सकों के होने के बावजूद दुनिया की आधी से ज्यादा जनसंख्या रुग्ण और दुःखी है । यह मनुष्य की विडंबना है कि वह केवल धन-संपत्ति और सुविधा-साधनों को ही जीवन के सुखों का मूल आधार मानता है, जबकि एक अधिसंपन्न संभ्रांत व्यक्ति जितना चिंतित, तनावग्रस्त और रुग्णचित्त मिलेगा, उतना एक सामान्य व्यक्ति नहीं। ज़रा किसी पैसे वाले व्यक्ति की जिंदगी पर ध्यान देकर देखें । उसकी सेवा में दस गाड़ी - बंगले और नौकर मिल जाएंगे, Jain Education International 17 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003877
Book TitleJiye to Aise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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