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कहा, 'निश्चय ही मैं भारतीय हूं, पर मेरे भारतीय होने का इस प्रश्न के साथ क्या संबंध?' वृद्ध ने मुस्कराते हुए कहा, 'भारतीय हमेशा अपने लिए मृत्यु को देखता है और जापानी हमेशा जीवन को। जो सवाल तुमने मुझे आज पूछा है, वह मुझसे तब भी किया गया था, जब मैं साठ वर्ष का था। मैंने इस दौरान सात नई भाषाएं सीखी हैं और पूरे विश्व का दो बार भ्रमण किया है।'
आंखों में बसे जीवन का सपना जिनकी आंखों में मृत्यु की छाया है, उनका नज़रिया नकारात्मक है। जिनकी आंखों में सदा जीवन का सपना है, वे सकारात्मक दृष्टि के स्वामी हैं। दृष्टि के नकारात्मक होते ही मन में उदासी और निराशा घर कर लेती है, व्यक्ति की चिंतन-शक्ति चिंता का बाना पहन लेती है, बुद्धि की उच्च क्षमता होने के बावजूद जीवन में मानसिक रोग प्रवेश कर जाते हैं। हम यदि अपने नज़रिए को बदलने में सफल हो जाते हैं, तो जीवन की शेष सफलताएं अपने-आप आत्मसात हो जाती हैं। गत सप्ताह ही तमिलनाडु के कारागार से एक ऐसा कैदी छूटा, जो कैद हुआ था, तब तो किसी हत्या का अभियुक्त था और जब जेल से छूटा, तो सीधा विश्वविद्यालय का प्रोफेसर बना। उसे अपने किए का प्रायश्चित हुआ। उसने कारागार में रहकर ही सारी शिक्षा ग्रहण की। मीडिया ने उसकी विश्वविद्यालय में नियुक्ति की जानकारी दी। इसे कहते हैं जीवन को बदलना, जीवन का रूपांतरण करना।
स्वयं की जीवन-दृष्टि को सकारात्मक बनाने के लिए हम सबसे पहले अपनी सोच और मानसिकता को सकारात्मक बनाएं। हम न केवल अपनी सोच को अच्छा बनाएं, बल्कि हर किसी में अच्छाई ही तलाशें। औरों में अच्छाइयां देखना अच्छे व्यक्ति का काम है, जबकि किसी में बुराई देखना स्वयं ही बदसूरत काम है। किसी में अच्छाई देखकर हम उसका उपयोग कर सकेंगे, बुराई पर ध्यान देने से हम उसके द्वारा मिलने वाले लाभों से वंचित रह जाएंगे। आखिर दुनिया में ऐसा कौन है, जो पूर्ण हो? कमियां तो हर किसी में रहती हैं। औरों में कमियां देखना क्या कमीनापन नहीं है? गिलास को आधा खाली
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