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________________ संपदा दी है, जिसके आगे पृथ्वी-भर की सारी संपदाएं तुच्छ और नगण्य हैं, वह है, सोचने की क्षमता। अगर मनुष्य के जीवन से सोचने की क्षमता को अलग कर दिया जाए, तो शायद मनुष्य पशुतुल्य ही होगा और किसी जानवर को सोचने की क्षमता प्रदान कर दी जाए, तो उसकी स्थिति मनुष्य के समकक्ष होगी। सोच ही मनुष्य है मनुष्य के पास विचार-शक्ति ऐसी अनुपम सौगात है कि जिसके चलते वह धरती के सारे पशुओं और पक्षियों के बीच अपने आप में सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ कृति बन सकता है। आप | सोच में अगर सत्य हो, | ज़रा ऐसे इनसान की कल्पना करें कि शिवत्व हो, सौंदर्य हो, जिसके पास सोचने की क्षमता नहीं है। तो तुम्हारी सोच तुम्हारे आप ताज्जुब करेंगे, तब हर मनुष्य, चाहे लिए अंतर का सुवास वह बालक हो या प्रौढ़, वन-मानुष का बन सकता है, प्रकाश हो | चेहरा लिए हुए होगा। कोई व्यक्ति इसीलिए सकता है। जड़-बुद्धि कहलाता है, क्योंकि उसका -न जन्म, न मृत्यु | मस्तिष्क विकसित नहीं हुआ है। मस्तिष्क की अपरिपक्वता व्यक्ति को पूरे शरीर से अपंग भी बना देती है। जीवन-विज्ञान कहता है कि जिस व्यक्ति का मस्तिष्क विकसित हो चुका है, वह भले ही किसी हेलन केलर की तरह अंधा-बधिर या मूक हो, लेकिन ऐसा सृजन कर सकता है, जो अविस्मरणीय हो, अनुकरणीय हो। ___सोच ही मनुष्य है। सोच को अगर किसी भी जंतु के साथ जोड़ दिया जाए, तो वह भी मनुष्य हो जाएगा। इनसान के पास जीवन की ऐसी अनुपम सौपात है, फिर भी कोई इनसान अपनी सोच को स्वस्थ रखने के लिए सचेष्ट नहीं है। अगर शरीर जुकाम या बुखार से ग्रस्त हो जाए, तो हम तुरंत डॉक्टर की तलाश करते हैं, मगर अपनी विकृत, अपरिष्कृत सोच को संस्कारित करने के लिए, उसको स्वस्थ बनाने के लिए भला कितना उपाय कर पाते हैं। जीवन में पाई जाने वाली किसी भी सफलता का अगर वास्तविक रूप से किसी को श्रेय दिया जाना चाहिए, तो वह व्यक्ति की अपनी सोच और कार्य-शैली है। 78 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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