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________________ तब बुद्धिमान व्यक्ति ने पूछा, 'मैं तुम्हें तुम्हारे सवाल का जवाब दूं, उससे पहले मैं यह जानना चाहूंगा कि तुम जिस गांव को छोड़ना चाहते हो, उस गांव के लोग कैसे हैं?' उस राहगीर ने कहा, 'जिस गांव में मैं रहता था, उसकी तो पूछो ही मत । वहां के लोग बड़े रूखे, निर्दय और बेहूदे हैं । इसी कारण तो मैं वह जगह छोड़ना चाहता हूं ।' बुद्धिमान आदमी ने कहा, 'तब तो यह स्थान भी तुम्हारे रहने योग्य नहीं है, क्योंकि यहां के लोग भी वैसे ही बदमिज़ाज हैं ।' कुछ दिनों के बाद एक और राहगीर उधर से गुज़रा। उसने भी वही प्रश्न बुद्धिमान व्यक्ति से किया, 'श्रीमान, मैं इस गांव के लोगों के बारे में आपकी राय जानना चाहता हूं । मैं अपनी मौजूदा जगह छोड़कर कहीं और बसना चाहता हूं ।' बुद्धिमान ने वही प्रश्न किया, 'मैं तुम्हें तुम्हारे सवाल का जवाब दूं, उससे पहले मुझे ज़रा यह बताओ कि जिस गांव को तुम छोड़ना चाहते हो, उस गांव के लोग कैसे हैं?' उस आदमी ने कहा, 'श्रीमान उस गांव के लोग बड़े दयालु, एक-दूसरे के सुख-दुख में सहायक और सरलमन हैं ।' बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा, 'महाशय इस गांव के लोग भी वैसे ही दयालु, हमदर्द और उदार हैं। आप यहां बड़े प्रेम से निवास करें ।' किसी की गाली इसलिए अंगारा बन रही है, क्योंकि तुम सरोवर न हो पाए । - चलें, फिर एक बार बुद्धिमान व्यक्ति का पुत्र दोनों राहगीरों की बातचीत का साक्षी था । उसे अपने पिता के व्यवहार पर विस्मय हुआ । उसने अपने पिता से पूछा, 'आपके सामने अलग-अलग राहगीरों द्वारा एक ही प्रश्न पूछा गया, मगर आपने दोनों को अलग-अलग जवाब दिया, ऐसा क्यों ?' पिता ने कहा, 'बेटा, आज तुम जीवन और जगत का यह विज्ञान समझ ही लो कि दुनिया वैसी नहीं दिखती, जैसा कि तुम उसे देखना चाहते हो । दुनिया वैसी ही नज़र आती है, जैसे कि तुम स्वयं होते हो । अगर तुम अपने गांव को रूखा, निर्दय और बेहूदा कहते हो, तो निश्चय ही तुममें भी उतनी ही निर्दयता, उतना ही रूखापन, उतनी ही बेहूदगी होगी । अगर हम अपनी ओर से गांव को बड़ा दयालु और शालीन तथा सलीक़े वाला समझते हैं तो हम भी वैसे ही होंगे ।' Jain Education International 51 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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