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________________ का ख्याल नहीं रहता। उसने कहा, 'एक हज़ार दीनार।' जगडू शाह के आदमियों ने कहा, 'दो हज़ार दीनार।' उसने कहा, 'पांच हज़ार दीनार।' उधर से आवाज़ आई, 'पच्चीस हज़ार दीनार।' बात बढ़ती ही चली गई। नुरुद्दीन ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया। उसने कहा, 'पचास हज़ार दीनार। जगड़ शाह के आदमी को लगा कि पैसा तो ऐसे ही आएगा और जाएगा, किंतु जगडू शाह का नाम नीचा नहीं होना चाहिए। उसने सीधे सवा लाख दीनार बोल दिए। एक मामूली नीले-से पत्थर के लिए सवा लाख दीनार। पत्थर बिक गया। पत्थर जगड़ शाह के पास भद्रावती लाया गया। जब जगड़ शाह को सारी बात पता चली, तो उसने अपने मुनीम का कंधा थपथपाया और कहा, 'तुमने ईरान में अपने मालिक का नाम रखा, उसके लिए तुम्हे साधुवाद है। इसका उपयोग पूजाआराधना या किसी-न-किसी इबादत के लिए ही किया जाएगा।' उसने कहा, 'मंदिरों के शिल्पियों को यहां आमंत्रित किया जाए।' तब मंदिर के शिल्पियों को वहां आहूत किया गया। उसने शिल्पियों से कहा, 'मुझे अपनी ओर से एक मस्जिद का निर्माण करवाना है।' जगड़ शाह की बात सुनकर लोग इस बात के लिए भौंचक्के हो उठे। शिल्पियों ने कहा, 'मालिक, कोई चूक तो नहीं हुई है। आप भूल से मंदिर के बजाय मस्जिद बोल चुके हैं।' जगडू शाह ने कहा, 'नहीं, जिस नुरुद्दीन ने एक पत्थर को खरीदने के लिए पचास हज़ार की बोली चढ़ा दी, वह उसका उपयोग किसी मस्जिद के निर्माण के लिए ही करता। इस कारण इसका उपयोग किसी-न-किसी मस्जिद के निर्माण में ही होगा। कहते हैं कि भद्रावती नगर के बाहर समुद्र तट पर आज भी वह भव्य मस्जिद खड़ी है। जब वह मस्जिद बनकर तैयार हुई, तो उसका उद्घाटन करवाने के लिए, पहली नमाज़ अदा करवाने के लिए नुरुद्दीन को आमंत्रित किया गया और तब नुरुद्दीन ने पहली नमाज अदा की। 39 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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