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________________ डालता। मैं जो कुछ हूं, अपने बाप के कारण हूं।" मैं दूसरे भाई के पास गया और उससे भी पूछा, “जनाब, तुम इतने सुशील कैसे हो? तुम सब लोगों के साथ इतनी मधुरता और शालीनता से कैसे पेश आते हो?" उसने कहा, "अपने पिता के कारण।" मैं आश्चर्य में पड़ गया। मैंने पूछा, "क्या मतलब?" मेरा प्रश्न सुनकर दूसरे भाई ने कहा, "बचपन में मैं देखा करता था कि मेरे पिता अव्वल दर्जे के नशेबाज़ थे। वे नशे में मेरी मां को, हम बच्चों को बड़ी बेरहमी से मारते-पीटते, असह्य गालियां निकालते। उसी वक़्त मैंने संकल्प ले लिया कि मैं कभी भी अपनी पत्नी पर हाथ नहीं उठाऊंगा, मैं अपने बच्चों को नहीं सताऊंगा। मैं समाज में इज्ज़त की जिंदगी जिऊंगा। मेरे जीवन में जो कुछ भी अच्छाइयां हैं, वे इसी संकल्प की बदौलत हैं।" एक ही माता-पिता की संतान, एक ही वातावरण, लेकिन स्वभाव में और परिणाम में कितनी भिन्नता! जीवन का पाठ पढ़कर हम उसे ऊंचाइयां प्रदान करते हैं या गर्त में ढकेलते हैं, यह हम पर, हमारी समझ और दृष्टि पर ही निर्भर है। स्वर्ग हमारे हाथ में कहीं ऐसा तो नहीं कि जो जीवन हमारे लिए एक अमृत-वरदान है, जिसके सामने दुनिया भर की संपदाएं तुच्छ और बेमानी हैं, उसे हमने बहुत दुखी, खिन्न, विपन्न और दीन-हीन बना डाला हो? जीवन तो हम सब कुछ कर सकते | 7 बांस की एक पोंगरी है। एक ऐसी पोंगरी | कि जिसको लोग या तो आपस में हैं, इस आत्मविश्वास लड़ने लड़ाने के काम में लेते हैं या शामियानों और आत्म संकल्प के | को खड़ा करने के उपयोग में लेते हैं या साथ पुरुषार्थ करो। अंत्येष्टि संस्कार में प्रयोग करते हैं। मेरे -न जन्म, न मृत्यु | लिए यह पोंगरी बड़ी मूल्यवान है। उतनी ही, जितना यह जीवन है। जीवन में और बांस की पोंगरी में कुछ साम्यता है। इस जीवन रूपी पोंगरी का एक बेहतरीन उपयोग है, जिसे लोग नज़र-अंदाज़ कर देते हैं, जिसके प्रति आंखें मूंद लेते हैं। वह उपयोग है, उस पोंगरी से स्वरलहरियां पैदा करना, उसे बांसुरी का रूप देना। अगर बांस बांसुरी बन जाए, बांसुरी पर अंगुलियां 24 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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