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आखिर टाटा कोई आकाश से टपके हुए देवता नहीं हैं, बिडला जमीन फोड़कर पैदा होने वाली शक्ति नहीं हैं। अम्बानी किसी और देश से आई हुई ताकत नहीं हैं। हममें से ही जिन्होंने अपनी सोच को सकारात्मक बनाया, नज़रिए को बेहतर बनाया, उन्नत लक्ष्य निर्धारित किया, लक्ष्य को पूरा करने की योजनाएं तैयार की, जो अपने पूरे विश्वास के साथ अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील हो गए, उन्हीं लोगों में से कोई टाटा, बिड़ला या अम्बानी बनते हैं। जो लोग अपना भरोसा न रख पाए, कमजोर मन से अपना जीवन जीते रहे, वे लोग ही समाज के पास जाकर भीख मांगने को तैयार हो सकते हैं।
यह समाज तो सहयोग दे देगा। मानवता के प्रति, समाज के प्रति भावना रखने वाले लोग अवश्य मदद दे देंगे। लेकिन उस इनसान से ज्यादा हारा हुआ और कोई नहीं होगा, जो भीख मांगने के लिए अपना हाथ किसी के सामने फैला दे। हम अपने पुरुषार्थ को नपुंसक क्यों करते हैं। हम ऐसे पुरुषार्थ के मालिक बनें, जो पुरुषार्थ विधाता की विडंबना को भी स्वीकार करता जाए और यह कहे कि बेटियां तुम देते जाओगे, तब भी मैं अपने पुरुषार्थ से इतना धन अर्जित करता जाऊंगा कि बेटियों के भाग्य से मेरा भाग्य सवाया हो जाएगा।
ईश्वर ने इनसान को गरीब के रूप में पैदा नहीं किया है। हर व्यक्ति अमीर है। हर व्यक्ति करोड़पति है। ज़रा मूल्य आंकिए अपने स्वयं का। आपकी एक टांग की आप कितनी कीमत समझते हैं। दो कौड़ी? अगर लोग कहते हैं यह शरीर अनित्य है, यह शरीर मरण
र्मा है, इस शरीर का कोई मूल्य नहीं है। मैं आपसे आपका पांव मांगता हूं। एक लाख रुपए मिल जाएंगे, क्या आप अपनी एक टांग किसी को दे देंगे। मैं आपसे आपकी एक आंख मांगता हूं, क्या आप अपनी एक आंख किसी को दे देंगे? वे आपको पांच लाख रुपए देने को तैयार हो जाएंगे। क्या आप अपना गुर्दा किसी को दे देंगे, क्योंकि जरूरतमंद लोग आपके एक गुर्दे की कीमत पांच-सात लाख रुपए दे देंगे। क्या आप अपना हार्ट किसी को दे सकते हैं? उस हार्ट के बदले कोई भी इनसान दस लाख रुपए की कीमत चुकाने को तैयार हो सकता है। पर हम कतई नहीं बेचेंगे।
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