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________________ एक व्यक्ति को सिगरेट में हेरोइन पीने की आदत थी । उसकी माँ हमारे पास आई और बोली, महाराज श्री इसे हेरोइन छुड़वा दीजिए। पैसा बर्बाद हो रहा है और घर भी उजड़ रहा है। हमने कहा, 'दस दिन इसे हमारे पास छोड़ दो।' वह व्यक्ति तीन दिन भी हमारे पास नहीं रह पाया । संध्या होते ही वह मछली की तरह तड़पने लगता, छटपटाने लगता है। हेरोइन उसकी आवश्यकता बन गई। उसे हेरोइन नहीं मिलती तो है ! रातभर तड़पता रहता । मैंने सोचा इंसान भी कितना मूढ़ मनुष्य के जीवन में अगर ऐसी वेला आती है कि राजर्षि जनक जैसा अनासक्त भाव आता है, भरत चक्रवर्ती जैसी निस्पृहता आती है, भगवान श्रीकृष्ण जैसा अनासक्त योग जगता है, तो संसार में सब कुछ करके भी संसार के दलदल से ऊपर उठे रहोगे। संसार में मकान, दुकान, घर-परिवार के मध्य रहने पर भी स्वयं को उससे ऊपर पाओगे। अभी आप ध्यान कर रहे हैं, और आपने पाया होगा कि यहाँ से जाने के बाद घर और दुकान में भी स्वयं को आनन्दित महसूस कर रहे होंगे। ध्यान का छोटा-सा फल आपको प्रतिदिन मिल रहा है। आपका जीवन कुम्हलाए हुए फूल की तरह बीत रहा था, लेकिन अब ध्यान से आपके जीवन में प्रसन्नता के फूल खिल रहे हैं, महक छा रही है । महाभारत की कहानियों में एक प्यारी कहानी है। कुछ गोपिकाएँ यमुना नदी पार कर कृष्ण के पास जाना चाहती थीं। यमुना में बहुत पानी था और नाव कोई न थी । यमुना किनारे दुर्वासा ऋषि बैठे थे । वे गोपिकाएँ दुर्वासा के पास गई। गोपिकाओं के पास झोलों में कुछ मिठाइयाँ थीं, दुर्वासा ने वे मिठाइयाँ ले लीं और सब खा गए । मिठाइयाँ खा लीं तो कुछ नहीं, गोपिकाओं ने कहा- हमें यमुना पार जाना है हम उस पार कैसे जाएँ। दुर्वासा ने कहा- तुम यमुना के पास जाओ और कहीं अगर आज दुर्वासा ने उपवास किया हो तो हमें मार्ग दे दो । गोपिकाएँ असमंजस में पड़ गईं। अभी-अभी तो ऋषि ने हमारी सारी मिठाई खाई है और कहते हैं ..... ! खैर, वे यमुना किनारे गईं और वे ही शब्द दुहरा दिए। आश्चर्य, वहाँ मार्ग बन गया। यमुदा दो हिस्सों में बँट गई । सारी गोपिकाएँ उस पार पहुँच गईं। दिनभर वे कृष्ण के साथ रहीं । रासलीला में मग्न । साँझ का समय हुआ उन्हें वापस आना था। उन्होंने कृष्ण को अपनी समस्या बताई । पानी चढ़ा हुआ है और नौका भी नहीं। कृष्ण ने पूछा- तुम आईं कैसे थीं? जैसे आईं वैसे ही वापस चली जाओ। गोपियों ने सारा किस्सा बयान कर दिया । कृष्ण ने कहा- तुम फिर यमुना के पास जाओ और कहो कि अगर कृष्ण ने रास - लीलाएँ न की हों तो मार्ग दे दो । गोपियाँ कृष्ण के ऊपर हँसती हुई कि दिन भर हमारे साथ वृन्दावन में हँसते-गाते, खेलते- रास रचाते रहे और अब कहते हैं ..... । खैर, अपना क्या, चलो यही सही । वे 86 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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