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________________ कभी ठंडी चाय पीती हो? जितनी भी आवश्यकताएँ हैं, यहाँ तक कि विलासिताओं की भी पूर्ति करते हो फिर वैराग्य कहाँ रहा? सारी वृत्तियाँ और प्रवृत्तियाँ वैसी-कीवैसी रहती हैं और व्यक्ति वैराग्य के ताव में आकर अगर कुछ छोड़ता है तो एकमात्र धर्म-अध्यात्म के मार्ग को। जिनके घरों में किसी की मृत्यु हो जाए, उन्हें वैराग्य के भाव को जीना चाहिए। यह सोचना चाहिए कि इनकी मृत्यु मेरे जीवन में भी मृत्यु का संदेश है। दूसरे की मृत्यु हमें जाग्रत करती है। शहर का श्मशान या कब्रिस्तान कहीं बनाना हो तो शहर के बीचों-बीच चौराहे पर बनाओ ताकि वहाँ से गुजरता हआ हर इंसान अपने जीवन के वास्तविक स्वरूप को देख सके कि यह जीवन पानी के बुलबुले के समान क्षणभंगुर है। ये आती-जाती साँसें कब खत्म हो जाएँ, पता नहीं। जीवन में जितनी भी दुर्घटनाएँ घट रही हैं हमें जीवन का ही संदेश दे रही हैं। पड़ौसी की मृत्यु हमें जागरूक होने की प्रेरणा दे रही है। पत्नी की मृत्यु अपनी ही मृत्यु का संदेश समझो। लोगों की स्थिति तो यह है कि अभी पत्नी को मरे एक माह भी नहीं बीता और व्यक्ति दूसरी पत्नी की तलाश शुरू कर देता है। कहाँ है वैराग्य। जिस पत्नी के साथ बीस वर्ष रहे, साथ जीने-मरने की कसमें खाईं, सब लुप्त हो गयीं। हमारी तृष्णा और वासना ने हम पर विजय प्राप्त कर ली है। ___ अभी कुछ दिन पूर्व समाचार-पत्र पढ़ते हुए वर-वधू के कॉलम पर नज़र चली गई। पढ़ा, एक सत्तर वर्ष के व्यक्ति (सिर्फ सत्तर वर्ष) के लिए कन्या की तलाश है। उस व्यक्ति से पूछो, क्या जीवन भर वधुओं की तलाश ही करते रहोगे या अपनी भी कुछ तलाश करोगे? एक मरी, दूसरी ले आए, दूसरी के बाद तीसरी, तीसरी के बाद चौथी। खुद मरोगे तो किसे लाओगे? आखिर हमारी वृत्तियों की तृप्ति कब आएगी। हमारी वासनाएँ, तृष्णाएँ, लालसाएँ कब मर पाएँगी? पच्चीस वर्ष का युवक जब दोबारा विवाह करने को तत्पर होता है तो बात कुछ जमती है। साठ वर्ष का बूढ़ा भी जब चौथा विवाह करने को तैयार होता है तो मन में ग्लानि होती है कि क्या मनुष्य इतना गिर गया है? कल कुछ युवकों के बीच ऐसी ही चर्चा चल रही थी, एक ने कहा, साहब! एक सत्तर वर्ष का वृद्ध लखनऊ की किसी नुमाइश में गया।लोग वहाँ काफी शान-शौकत से सज-धजकर आये थे। एक सुंदर महिला को देखकर वृद्ध से न रह गया। वह उसके पीछे हो गया। जब मौका मिले धक्का मारे, च्यूंटी ले। ____ आखिर उस महिला से न रहा गया। उसने उससे कहा, 'अरे बुढ़ऊ शरम नहीं आती? बाल सफेद हो गये, जवान स्त्रियों को धक्के मारते हो।' 66 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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