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________________ जाता है। ध्यान कोई शब्द नहीं है। यह अस्तित्व में रमण करने के लिए है। यदि हम केवल शब्दों में उलझ गए, शब्दों का ही रटन करते रह गए तो ध्यान हमारे जीवन का रूपान्तरण नहीं कर पाएगा, जीवन को बदल नहीं पाएगा। मात्र शब्दकोश की महिमा बनकर रह जाएगा। देखिये, शब्दकोश में 'घोड़ा' होता है और अस्तबल में भी एक घोड़ा होता है। शब्दकोश का घोड़ा घोड़े की स्मृति तो दिला देगा पर उसे साकार नहीं कर सकेगा। भारत का नक्शा तुम्हें अनेक जानकारियाँ दे सकता है पर भारत को दिखा नहीं सकता। किसी ने तुम्हारे हाथ में हिमालय का नक्शा दे दिया। तुम उसे सुबह से साँझ तक देखते रहे। वह तुम्हें बता देगा कि यहाँ बद्रीनाथ है, वहाँ केदारनाथ है, यहाँ गंगोत्री है, वहाँ फूलों की घाटी है, यहाँ यमुनोत्री है, वहाँ टिहरी-डैम है, सारी जानकारियाँ दे देगा, लेकिन हिमालय का आनन्द नहीं दे पाएगा। ठंडी हवाएँ, सुरम्य वातावरण, प्रकृति का सौंदर्य इनसे तो वंचित ही रहे। नक्शे या किताबें हमें जानकारियाँ भर दे सकते हैं। ध्यान का उपयोग अगर जानकारी तक ही रखा, प्रवचनों और शास्त्रों तक ही सीमित रहा, तो अनंत संभावनाओं वाला बीज दबा-का-दबा रह जाएगा। कल एक महानुभाव कहने लगे, 'जब आप कहते हैं कि ध्यान से मनुष्य को शांति मिलती है, तो सारी दुनिया ध्यान को क्यों नहीं अपना लेती।' यह प्रश्न नहीं, तर्क है। अब तुम स्वयं ईमानदारी से सोचो, तुम्हारे भीतर कहीं शांति की तलाश है? भगवान बुद्ध के पास भी एक युवक पहँचा और बोला, 'आप तीस वर्ष से धर्म का उपदेश दे रहे हैं । मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि इस धर्मोपदेश से कितने हजार या कितने लाख लोगों ने शांति उपलब्ध की। अगर आपके उपदेश से किसी ने शांति पाई तो मैं भी पाऊँ।' बुद्ध मुस्कराए और कहा, 'तुम शहर में जाओ और अपने मित्रों, परिजनों, परिचितों से पूछो कि वे जीवन में क्या चाहते हैं।' युवक ने कहा, 'मुझे कोई दिक्कत नहीं है अगर आप इसका लेखा-जोखा पाना चाहते हैं।' युवक गया। अपने सभी रिश्तेदारों, मित्रों, परिचितों के पास गया और एक-एक से पूछा, तुम जीवन में क्या चाहते हो। जिसने जो बताया, लिखता चला गया। साँझ होते-होते वह लगभग दो सौ लोगों से पूछ चुका था। अन्तत: जब उसने सूची को निहारा तो पाया कि कोई धन को चाहता है, किसी को पुत्र की कामना है, कोई मकान बनवाना चाहता है, किसी की दुकान की लालसा है, कोई गृहलक्ष्मी की आशा में है, पता नहीं कितनी-कितनी कामनाएँ थीं। युवक चकराया, इस सूची में किसी ने भी यह नहीं कहा था कि उसे शांति की तलाश है। अन्त में युवक बुद्ध के पास गया और 64 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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