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जिनत्व की ओर कदम बढ़ा रहे हो। जैन न बन पाए तो कुछ घटेगा अगर जिन बन गए तो सब उपलब्ध हो जाएगा। यदि जैन से ऊपर उठकर जिनत्व की ओर कदम बढ़ा दिए तो तुम महावीरत्व की ओर बढ़े, बशर्ते जीवन में वीतरागता को उपलब्ध करने की कला आ जाए। ___ अन्त में, एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ जिसने मुझे खुद के जीवन में राग और द्वेष से ऊपर उठने की शिक्षा दी।
सुना है, एक गुरु और शिष्य एक गाँव से दूसरे गाँव की ओर जा रहे थे, मार्ग में नदी आ गई। नदी में कमर तक का पानी था। दोनों ने सोचा चलो चलकर ही नदी पार कर लेंगे, कमर तक ही तो पानी है। गुरु आगे चल रहे थे शिष्य पीछे-पीछे था।
नदी किनारे पहुँचे। वहाँ बीस वर्षीय एक युवती खड़ी थी। युवती ने वृद्ध संत से कहा, 'संत बाबा ! मेरा हाथ पकड़कर मुझे नदी के उस पार पहुँचा दो। मैं डरती हूँ, भयभीत हो रही हूँ कि पानी में अकेले उतरूँगी तो कहीं बह न जाऊँ।' वृद्ध संत ने कहा, तुम कैसी पगली हो, तुम नहीं जानती मैं संन्यासी-साधु हूँ। तुम्हें पकड़ना तो दूर मैं तो तुम्हारे कपड़ों को भी नहीं छू सकता।' युवती ने बहुत गुहार की, संतप्रवर! आप वृद्ध हैं, मैं अकेली हूँ, मुझे उस पार जाना जरूरी है, साँझ ढलने को आ रही है, मेरे परिवार के लोग चिन्तित होंगे, नौका है नहीं और मैं अकेली नदी को पार करने की हिम्मत नहीं रखती हूँ, कृपया मेरा हाथ पकड़कर मुझे उस पार लगा दीजिए।' लेकिन वृद्ध संत ने स्पष्ट इंकार कर दिया कि उनसे यह संभव नहीं है। युवती की
आँखों में आँसू आ गए, पर वृद्ध संत तो आगे बढ़ गए। ___ अब युवक संत वहाँ पहुँचा। युवती ने यही कहानी उस युवा संत को भी सुनाई। 'मुझे उस पार पहुँचा दो'- युवती ने अनुनय की। युवा संत ने सोचा, मैं भी पानी में उतरूँगा, यह भी पानी में उतरेगी, दोनों के कपड़े क्यों गीले किये जाएँ?' उसने युवती से कहा, 'तुम्हें तो उस पार जाना है न, ऐसा करो तुम मेरे कंधे पर बैठ जाओ, मैं तुम्हें पार लगा देता हूँ।'
युवक संत ने युवती को कंधे पर बिठाया और नदी पार कर ली। युवती के कपड़े जरा भी न भीगे। पार आकर संत ने युवती को उतारा। युवती अपने गाँव की ओर रवाना हो गई और युवक संत अपने गुरु के पीछे-पीछे दूसरी ओर चल दिया।
थोड़ी दूर चलने के बाद गुरु ने प्रश्न खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा, 'तुम दीक्षा और साधुत्व के अयोग्य हो गये हो। 'क्यों?' युवक ने पूछा। क्योंकि तुमने उस युवती को अपने कंधे पर बिठा लिया', वृद्ध संत बोले। कौन-सी युवती' युवा संत ने
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