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________________ तुम्हें इसी अवस्था को उपलब्ध कराता है। ध्यान से न तो स्वर्ग की अप्सराएँ मिलेंगी और न नरक की यंत्रणाएँ। ध्यान तो तुम्हें पाप और पुण्य से मुक्त करके दृष्टा को उपलब्ध कराता है। मोक्ष और निर्वाण दिलाता है। ध्यान उस दशा का नाम है, जब व्यक्ति शुभ-अशुभ दोनों ही विचारों से ऊपर उठकर शुद्धता को उपलब्ध होता है। पाप और पुण्य दोनों आनन्द भाव में विलीन हो जाते हैं । अगर यह सही है कि मृत्यु के समय जो भाव होते हैं, शरीर को वैसी ही गति मिलती है। तो मेरे प्रभु, ध्यान में डूब जाओ। यदि आपकी मृत्यु ध्यान में होती है, तो वह जीवन का समाधि-मरण होगा। निर्वाण और मोक्ष उसी दशा का नाम है, जब व्यक्ति निर्विचार-निर्विकार हो जाता है। ___ मुझसे प्रायः यह पूछा जाता है कि आपने इतने ध्यान-शिविर लगाए, सैकड़ों व्यक्तियों ने ध्यान किया। क्या, किसी को किन्हीं देवी-देवता के दर्शन हुए? मैं कहूँगा, एक ध्यान-साधक व्यक्ति जो निर्विचार स्थिति को पा रहा है, उससे बढ़कर देवी-देवता का मूल्य नहीं हो सकता। जिसका चित्त शांत हुआ है, मन विकल्पों से रहित हुआ है, वह निर्विचार समाधि में पहुँच गया है, तो वह देव और दानव दोनों से विदेह हुआ। वह दोनों में भेद नहीं करेगा। इसलिए ध्यान-साधना में देवों के नहीं अपितु स्वयं के दर्शन करना है। तुम लाखों को देखकर भी क्या देख पाए, अगर स्वयं को न देख पाए। किसी मंत्र का जाप करके, मालाएँ गिनकर देव-दर्शन तो कर लोगे, पर अगर उस देव से कहा जाए कि मुझे निज-स्वरूप का दर्शन करवा दो, तो शायद वह भी न करा पाएगा। __ आप पर्युषण में सुनते हैं कि महावीर के पास इन्द्र आते हैं और कहते हैं, 'भगवन् ! आपके भावी जीवन में बहुत से विघ्न आएँगे, अगर आप आज्ञा दें तो मैं आपके साथ रहूँ और आपके विघ्नों का निवारण करता रहूँ।' महावीर ने कहा, 'इन्द्र ! कोई भी महापुरुष इस दुनिया में देवों के सहारे आत्म-दर्शन नहीं कर पाया। आत्म-दर्शन व्यक्ति को स्वयं करना पड़ेगा। ये देव-देवियाँ भी प्रलोभन हैं, इनका सहयोग भी कैवल्य में बाधक है। ध्यान पर-पदार्थ से मुक्त होकर स्व में डूबने की प्रक्रिया है।' __ध्यान 'पर' से मुक्ति और 'स्व' में निवास करने की प्रक्रिया है। वे धन्य हैं, जो ध्यान में उतर रहे हैं। जो जितना गहरा उतरेगा उसे ध्यान के मोती उपलब्ध होंगे। यह ध्यान का सागर है, डूबते चले जाओ गहरे और गहरे। उथले रह गए तो तिनके ही हाथ लगेंगे। डूब गए तो कुछ रत्न, कुछ मोती हाथ लग जाएँगे। 'जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ' - तट पर खड़े कुछ न पा सकोगे। जितने गहरे उतरोगे, पर से मुक्त होकर स्व में प्रविष्ट हो सकोगे। 16 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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