SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घर आयों के आँसू पोंछे, खुशहाली हर आँगन हो॥ पथ-भूलों को पथ दरशाएँ, धर्म-भावना हर उर हो। हर दरवाजा राम-दुवारा, हर मानव एक मंदिर हो॥ आत्म-बोध की रहे रोशनी, आँखें मन की निर्मल हों। नमस्कार है हुलसित उर से, सकल धरा धर्मस्थल हो। निवेदन : भावगीत के समापन के साथ ही सभी साधकों से निवेदन किया जाये कि हम अपनी दिनचर्या के प्रत्येक कार्य को प्रसन्नता, मनोयोग एवं बोधपूर्वक सम्पादित करें। हर तरह की प्रतिक्रिया से बचते हुए सुख-शांति के स्वामी बने रहें। सबके प्रति प्रेम, पवित्रता और मैत्री का व्यवहार रखें। सात्विक आहार और मितमधुर वाणी का उपयोग करें। यथासंभव मौन रखें। हर तरह के व्यसन से परहेज रखते हुए जीवन और व्यवहार को शुद्ध-संयमित बनाये रखें। हमारी प्रामाणिकता हमारी पहचान का प्रमुख चरण हो। 'गुरुवंदना' के साथ ध्यान-सत्र का समापन करें एवं गुरुदेव का उद्बोधन (प्रत्यक्ष या कैसेट प्रवचन) सुनकर आत्मबोध उपलब्ध करें। __ गुरु-वंदना गुरु की मूरत रहे ध्यान में, गुरु के चरण बनें पूजन। गुरु-वाणी ही महामन्त्र हो, गुरु-प्रसाद से प्रभु-दर्शन ॥ सभी एक-दूसरे को अध्यात्म-पथ का सहयात्री और प्रभु की मूरत मानते हुए, परस्पर अभिवादन करें, नमस्कार करें। | 141 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy