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________________ प्रत्येक अंग में चेतना का संचार करें। धीरे-धीरे हाथ-पैरों को हिलाएँ। बायीं करवट लेकर धीरे से उठकर बैठ जाएँ। विशेष : शवासन कभी भी किया जा सकता है। जब कभी हम तनावग्रस्त या थके हुए हों, तुरंत पाँच-दस मिनट के लिए शवासन करें। तनाव और थकान से अवश्य छुटकारा मिलेगा। अनिद्रा और उच्च रक्तचाप के समाधान में यह बहुत ही सहायक है । चित्त को शांत कर ध्यान लगाने में उपयोगी है। शिविर के दिनों में स्व-सूचन का, आत्म-निर्देशन का अच्छी तरह अभ्यास कर लें ताकि घर जाकर भी इसे स्वत: कर सकें। प्रत्येक संकेत बड़े प्यार भरे कोमल स्वर में दें। आज्ञापक या आदेशात्मक शब्दों का उपयोग न करें। प्राण-शुद्धि प्राणायाम 5 मिनट आसनों के बाद क्रम आता है प्राणायाम का। हमारा जीवन प्राण-शक्ति से संचालित है। 'प्राण' मन, वाणी और कर्म की सम्पादन-शक्ति का पर्याय है। प्राणशक्ति जितनी स्वस्थ, शुद्ध और संतुलित होगी, हमारा चिंतन-मनन और रहन-सहन भी उतना ही स्वस्थ, शुद्ध और संतुलित होगा। प्राण-तत्त्व आत्मा और शरीर का सेतु है। मनुष्य चौबीस घंटों में लगभग पचीस हज़ार श्वासोच्छ्वास लेता है। प्राणायाम का मूल उद्देश्य है प्राण को विस्तार देना। हमारी प्राण-शक्ति सध जाए तो श्वास-प्रश्वास की गति घटकर प्रतिदिन लगभग आठ-दस हज़ार तक लाई जा सकती है, जिसका अर्थ है - अपेक्षाकृत अधिक शांत, आनन्दमय और दीर्घ जीवन । प्राणायाम इस प्राण-शक्ति को साधने का प्रयोग है। हमारा श्वास-प्रश्वास स्वतः जैसा चल रहा है, उसके प्रति हमारी कोई सजगता-सचेतनता नहीं है। कई तरह की अच्छी-बुरी संवेदनाओं का मन पर प्रभाव पड़ता है, जिससे प्राणधारा असंतुलित हो जाती है। प्राणधारा के इस विचलन को समाप्त कर पुनः संयमित, संतुलित करना ही प्राणायाम है। इससे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तनावों से मुक्त होने में मदद मिलती है। प्राणायाम स्वस्थ, सुन्दर और सुदीर्घ जीवन की कुंजी है। यह भटकती हुई मनोवृत्तियों पर नियंत्रण स्थापित करने का उपक्रम है। प्राणायाम के कई भेदोपभेद हैं, लेकिन ध्यान-साधना के लिए सर्वाधिक उपयोगी नाड़ी-शुद्धि प्राणायाम है, जिसकी विधि इस प्रकार है - विधि : सुखासन में बैठे। प्राणायाम करने के लिए हाथ की नासिक मुद्रा बनाएँ। | 135 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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