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________________ आप इस मंत्र को हमेशा अपने साथ रखिएगा। जब आप इस बोध को हमेशा साथ रखेंगे तो जीवन में मूर्छा, लालसा और तृष्णाएँ अपना मकड़-जाल नहीं रच पाएँगे। हमें सदा स्मरण रहेगा कि 'यह भी बीत जाएगा।' ध्यान का ध्येय यही है कि व्यक्ति अपने भीतर के बोध को, होश को, जागरूकता को जगा ले। ध्यान की अग्नि जलाकर अपने कर्मों को समाप्त कर ले। अपनी चेतना से जुड़ जाए। ध्यान का कार्य यही है कि व्यक्ति को अन्तर-जागरूक चेतना दे दे। इसके बाद जहाँ तुम रहोगे वहीं ध्यान सधेगा। ज़रूरत है बस एक बार बोध की लौ सुलगने की, जागरूकता की ज्योत जगने की। __ अपने होश, अपने बोध और अपनी जागरूकता को हमेशा जीवित रखो। जागरूकता के साथ जो भी कदम उठेगा वह सफल और सार्थक होगा। उसके बाद ध्यान तुम्हारे जीवन में आनन्द का अपूर्व उत्सव घटित करेगा। एक अद्भुत आनन्द, अपूर्व उल्लास, प्रफुल्लित चेतना। बस! क्षमा करें, उस अपूर्व आनन्द को तो मैं भी शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर पाऊँगा। जीवन की इस अत्यन्त पावन घटना का अनुभव आप खुद करेंगे। भीतर जो अँधेरी रात दिखाई देती है, चाँद खुद-ब-खुद प्रकट होगा, बदलियाँ छुट जायेंगी, न केवल तुम्हारे भीतर पूर्णिमा होगी - मेरे प्रभु! तुम खुद पूर्ण हो जाओगे - संगीत की ध्वनि वायु में जैसे मचलती। या पिछले पहर रात अमृत में ढलती। यों ध्यान में यौवन के थिरकता रूप। ज्यों स्वप्न की परछाई नयन में चलती। ज्यों सोम सरोवर में हृदय हंस का स्नान। ज्यों चाँदनी लहरों में बाँसुरी की तान। मुग्धा के मृदुल अधर पै यों साध की बात । ज्यों ओस धुले फूल की पावन मुस्कान । हाँ, तुममें भी ऐसा ही कुछ घटित होगा। प्रणाम है उन्हें जो इस ओर दो कदम बढ़ा चुके हैं। 104 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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