SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूसरों के घरों में आग लगाते हैं या अंधकार मिटाते हैं । प्रकृति ने औढरदानी बनकर मनुष्य को अपार क्षमताएँ दी हैं । यह मनुष्य पर है कि इन क्षमताओं का वह दुरुपयोग करता है या सदुपयोग । आणविक शक्ति का उपयोग सृजन के लिए करते हो या विध्वंस के लिए यह आप पर निर्भर है । आणविक क्षमता स्वयं न तो सृजन करती है न विध्वंस । विज्ञान ने जितनी भी प्रगति की है, प्रत्येक से हम सृजन और विध्वंस दोनों ही कर सकते हैं। हमारे हाथ में तलवार है अब यह हम पर है कि इसका उपयोग हम किसी को मारने में करते हैं या बचाने में। हम अपनी शक्तियों का सृजनात्मक और विध्वंसात्मक दोनों उपयोग कर सकते हैं। एक बात स्मरण रखिए जो व्यक्ति सृजन में अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं कर पाता वह विध्वंस में उपयोग करता है। गाँधी जैसा व्यक्ति उस शक्ति को सृजन में लगाएगा और हिटलर जैसा व्यक्ति विनाश-विध्वंस ही करेगा। मेरे देखे, बहुआ व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरुपयोग ही करत है । विज्ञान कहता है, मनुष्य अगर एक बार क्रोध करता है तो दिन भर की ऊर्जा नष्ट हो जाती है । जिस सृजन की क्षमता से हम गीत बना सकते थे, हमने गालियाँ बनाईं। आप सभी लोग क्षमता के धनी हैं । अब आप क्षमता का उपयोग क्षमा के लिए करते हैं या क्रोध के लिए, यह आप पर निर्भर है। जीवन में जितनी भी क्षमताएँ हैं सबका उपयोग बोधपूर्वक करो । सृजन करो तो भी होश से और विध्वंस करो तो भी बोधपूर्वक होना चाहिए । हमारे गाल पर मक्खी बैठी है और हमने हाथ से चाँटा लगाकर उसे उड़ा दिया तो हम दोष के भागी हो गए। मक्खी को चोट नहीं लगी पर हमने बेहोशी से हाथ उठाया । यह बात गौण है मक्खी को चोट लगी या नहीं, मुख्य तो यह है कि हमने बेहोशी से हाथ उठाया। बोधपूर्वक ध्यानपूर्वक हाथ उठाते-उठाते अगर मक्खी को चोट भी लग जाए तो हम दोष के भागी नहीं हो सकते । क्रोध भी होश से करो । और जैसे ही बोध जगेगा, आप क्रोध नहीं कर पाएँगे, किसी को अपशब्द नहीं कह सकेंगे । एक सज्जन मुझे कहने लगे कि उन्हें क्रोध बहुत आता है, कोई उपाय बताइये । एक बात तय है कि मनुष्य अपरिमित क्षमता का स्वामी है, नहीं तो जोर की आवाज़ कहाँ से आती । हाथ-पैर कैसे पछाड़ता । चीख - चिल्लाहट कैसे करता । यह अलग बात है कि उसे अपनी क्षमता का बोध नहीं है । इसलिए इन क्षमताओं का दुरुपयोग हो रहा है । वह व्यक्ति क्रोध को मिटाने का उपाय पूछ रहा था। मेरे पास एक कागज का टुकड़ा था। मैंने उस पर लिखकर दिया, 'मुझे क्रोध आ रहा है।' मैंने उससे कहा इसे अपनी जेब में रखो और जब भी क्रोध आए, इस चिट को निकालकर पढ़ना 100 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy